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________________ १. २. ३. ४. पाप पदार्थ दोहा पाप पदार्थ हेय है। वह जीव के लिए अत्यन्त भयंकर है । वह घोर रुद्र, डरावना और जीव को दुःख देने वाला है। पाप पुद्गल द्रव्य है। इन पुद्गलों को जीव ने आत्म-प्रदेशों से लगा लिया है। इनसे जीव को दुःख उत्पन्न होता है । अतः इन पुद्गलों का नाम पाप कर्म है। जब जीव बुरे बुरे कार्य करता है तब ये (पाप कर्म रूपी) पुद्गल आकर्षित हो आत्म-प्रदेशों से लग जाते हैं । उदय में आने पर इन कर्मों से दुःख उत्पन्न होता है । इस तरह जीव के दुःख स्वयंकृत हैं । पापोदय से जब दुःख उत्पन्न हों तब मनुष्य को क्षोभ नहीं करना चाहिए। जीव जैसे कर्म करता है वैसे ही फल उसे भोगने पड़ते हैं। इसमें पुद्गलों का कोई दोष नहीं है ' । पाप-कर्म और पाप की करनी ये एक दूसरे से भिन्न हैं । अब मैं पाप कर्मों के स्वरूप को यथातथ्य : भाव से प्रकट करता हूँ । चित्त को स्थिर रखकर सुनना । पाप पदार्थ का स्वरूप पाप की परिभाषा पाप और पाप फल स्वयंकृत हैं जैसी करनी वैसी भरनी पाप कर्म और पाप की करनी भिन्नभिन्न हैं
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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