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________________ २५४ नव पदार्थ "जो निग्रंथ इस प्रवचन में उपस्थित हो, सर्व काम, सर्व राग, सर्व संग, सर्व स्नेह से रहित हो सर्व चरित्र में परिवृद्ध-दृढ़ होता है उसे अनुत्तर ज्ञान से, अनुत्तर दर्शन से और अनुत्तर शान्ति-मार्ग से अपनी आत्मा को भावित करते हुए अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण और श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति होती है। __ "फिर वह भगवान, अर्हत्, जिन, केवली, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होता है। फिर वह देव, मनुष्य और असुरों की परिषद् में उपदेश आदि करता है। इस प्रकार बहुत वर्षों तक केवली-पर्याय का पालन कर आयु को समाप्त देख भक्त-प्रत्याख्यान करता है और अनेक भक्तों का अनशन द्वारा छेदन कर अन्तिम उच्छवास-निःश्वास में सिद्ध होता है और सर्व दुःखों का अन्त कर देता है। "हे आयुष्मान् श्रमणो ! निदानरहित क्रिया का यह कल्याण रूप फल-विपाक है जिससे कि निग्रंथ इसी जन्म में सिद्ध हो सर्व दुःखों का अन्त करता है।" १. दशाश्रुतस्कंध : दशा १०
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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