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________________ २४४ नव पदार्थ ___ ऐसी परिस्थिति में शुभ-अशुभ योग का निर्णायक तत्त्व भावना या उद्देश्य नहीं परन्तु वह कार्य जिन-आज्ञा सम्मत है या नहीं यह तत्त्व है। यदि कार्य जिन-आज्ञा सम्मत है तो उसमें मन, वचन, काय की प्रवृत्ति शुभ योग है और यदि कार्य जिन-आज्ञा सम्मत नहीं तो उसमें प्रवृत्ति अशुभ योग है : मन वचन काया रा योग तीनूंई, सावद्य निरवद जांणों। निरवद जोगां री श्री जिण आग्या, तिणरी करों पिछांणो रे।। जोग नाम व्यापार तणों में, ते भला ने मुंडा व्यापार | भला जोगां री जिण आगना छ, माठा जोग जिण आगना बार रे।। मन वचन काया भली परवरतावो, गृहस्थ नें कहें जिणराय। ते काया भली किण विध परवरतावें, तिणरों विवरो सुणों चित्त ल्याय। निरवद किरतब मांहें काया परवरतावें, तिण किरतब नें काय जोग जांणों। तिण किरतब री छे जिण आग्या, किरतब ने करों आगेवांणो रे।। स्वामीजी ने कहा है : ध्यान, लेश्या, परिणाम और अध्यवसाय से चारों ही शुभ-अशुभ दोनों तरह के होते हैं। शुभ ध्यान, शुभ लेश्या, शुभ परिणाम और शुभ अध्यवसाय इन चारों में ही जिन-आज्ञा है। अशुभ ध्यान, अशुभ लेश्या, अशुभ परिणाम और अशुभ अध्यवसाय इन चारों में जिन-आज्ञा नहीं। १. भिक्षु-ग्रन्थ रत्नाकर (खण्ड १) : जिनाग्या री चौपई ढाल : ३.३८-४१ : २. वही : ढा० १. १२-१६ : धर्म में सुकल दोनूं ध्यान में, जिण आग्या दीधी वारूवार रे। आरत रूद्र ध्यांन माठा बेहूं, यांने ध्यावें ते आग्या बार रे। तेजू पदम सुकल लेस्या भली, त्यांमें जिण आग्या नें निरजरा धर्म रे। तीन माठी लेस्या में आग्या नहीं, तिण सूं बंधे पाप कर्म रे। भला परिणामां में जिण आगना, माठा परिणाम आग्या बार रे। भला परिणाम निरजरा नीपजें, माठा परिणांमा पाप दुवार रे।। भला अधवसाय में जिण आगना, आग्या बारें माठा अधवसाय रे। भला अधवसाय सूं निरजरा हुवें, माठा अधवसाय सूं पाप बंधाय रे ।। ध्यांन लेस्या परिणाम अधवसाय, च्यारूं भलां में आग्या जांण रे। च्यारूं माठा में जिण आगना नहीं यांरा गुणां री कीजो पिछांण रे ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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