SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ हुआ देखकर शीत-निवारण के लिये अग्नि जला कर उसे तपाता है । स्वामीजी अन्यत्र कहते हैं-यदि भावना से योग शुभ हो तो यह योग भी शुभ होगा ! दूसरा मनुष्य जैन साधु को अनुकम्पावश सचित्त जल देता है। यदि भावना से योग शुभ हो तो साधु को सचित्त जल देना भी शुभ योग होगा ! आगम में अग्नि को लोहे के शस्त्र-अस्त्रों की अपेक्ष भी अधिक तीक्ष्ण और पापकारी शस्त्र कहा गया है। प्राणियों के लिए यह घात स्वरूप है। कहा है- "साधु अग्नि सुलगाने की कभी इच्छा न करे। प्रकाश और शीत आदि के निवारण के लिए भी किन्चित भी अग्नि का आरम्भ न करे। वह अग्नि का कभी सेवन न करे।" इसी तरह साधु के लिए सचित्त जल का वर्जन है। कहा है- "निर्जन पथ में अत्यन्त तृषा से आतुर हो जाने और जिह्व के सूख जाने पर भी साधु शीतोदक का सेवन न करे । * साधु को अकल्प्य का सेवन कराना जहाँ उसके व्रतों का भङ्ग करना है वहाँ अग्नि सुलगाने और सचित्त जल देने में भी हिंसा है। ऐसी हालत में भावना में शुभाशुभ योग का निर्णय करना सिद्धान्त सम्मत नहीं । जो जिन-आज्ञा के बाहर की क्रिया करता है उसकी भावना, उसके आशय और उद्देश्य शुभ नहीं कहे जा सकते । स्वामीजी आगे कहते हैं - एक मनुष्य साधुओं को वंदन करने की भावना से घर से निकलता है । रास्ते में अयतनापूर्वक चलता है। जीवों का घात होता है यदि भावना से योग शुभ हो तो जीवों का घात करते हुए अयतनापूर्वक चलना भी शुभ होगा ! 9. २. (क) दशवैकालिक सूत्र : ६.३३, ३५ : जायतेयं न इच्छन्ति पावगं जलइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्थं सव्वओ वि दुरासयं । । भूयाणमेसमाघाओ हव्ववाहो, न संसओ । तं पव-पयावट्ठा संजया किंचि नारभे ।। (ख) उत्तराध्ययन सूत्र : २.७ : न मे निवारणम् अत्थि छवित्ताणं न विज्जई । अहेतु अगिंग सेवामि इइ भिक्खू न चिन्तए । । नव पदार्थ उत्तराध्ययन सूत्र : २.४,५ : तउ पुट्ठो पिवासाए दोगुंछी लज्जसंज्जए । सीउदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे ।। छिन्नावाएसु पन्थेसु आउरे सुपिवासिए । परिसुक्खमुहादी तं तितिक्खे परीसहं ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy