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पुण्य पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी २५-२६
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२५. 'भगवती सूत्र' में पुण्य-पाप की करनी का उल्लेख (गा० ३३) :
'भगवती सूत्र' शतक ८ उद्देशक ६ से वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र कर्म के बंध-हेतुओं से सम्बन्धित पाठों के अवतरण ऊपर दिये जा चुके हैं। ज्ञानावरणीय आदि चार एकान्त पाप कर्मों के बंध-हेतु विषयक पाठ क्रमशः वहाँ इस प्रकार मिलते हैं :
(१) णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! नाणपडिणीययाए, णाणणिण्हवणयाए, णाणंतराएणं, णाणप्पदोसेणं, णाणच्चासायणयाए, णाणविसंवादणाजोगेणं णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे।
(२) दरिसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! दंसणपडिणीययाए, एवं जहा णाणावरणिज्जं, नवरं दंसणनामं घेत्तव्वं, जाव दसणविसंवादणाजोगेणं दंसणावरणिज्जकम्मासरीरप्पओनामाए कम्मस्स उदएणं जाव पओगबंधे।
(३) मोहणिज्जकम्मासरीर-पुच्छा। गोयमा ! तिव्वकोहयाए, तिव्वमाणयाए, तिव्वमाययाए, तिव्वलोभयाए, तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए, तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए मोहणिज्जकम्मासरीरप्पओग० जाव पओगबंधे ।
(४) अंतराइयकम्मासरीर-पुच्छा । गोयमा ! दाणंतराएणं, लाभंतराएणं, भोगंतराएणं, उवभोगंतराएणं, वीरियंतराएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं अंतराइयकम्मासरीरप्योगबंधे।
२६. कल्याणकारी कर्म-बंध के दस बोल (गा० ३४-३७) :
भिन्न-भिन्न पुण्य कर्मों के बंध-हेतुओं का पृथक-पृथक विवरण पहले आ चुका है। इन गाथाओं में स्वामीजी ने 'स्थानाङ्ग सूत्र' के दसवें स्थानक के उस पाठ का मर्म उपस्थित किया है, जिसमें भद्र कर्मों के प्रधान बंध-हेतुओं का समुच्चय रूप से संकलन है। वह पाठ इस प्रकार है :
दसहिं ठाणेहिं जीवा अगमेसिभद्दत्ताए कम्मं पगरेंति तं-अणिदाणताते, दिट्ठिसंपन्नयाए, जोगवाहियत्ताते, खंतिखमणताते, जिइंदियताते, अमाइल्लताते, अपासत्थताते, सुसामण्णताते, पवयणवच्छल्लयाते, पवयणउष्मावणताए । (१०.७५८)
इसका भावार्थ है-दस स्थानकों से-बातों से जीव आगामी भव में भद्र रूपकर्म प्राप्त करता है :