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नव पदार्थ
विपरीतं शुभस्य । (६.२२) शुभ नामकर्म के बंध-हेतु शुभ हैं और अशुभ नामकर्म के अशुभ ।
२२. उच्च-नीच गोत्र के बंध-हेतु (गाथा २९-३०) :
'भगवतीसूत्र' में उच्च गोत्रकर्म के बंध-हेतु का जो वर्णन आया है वह इस प्रकार है :
उच्चागोयकम्मासरीर-पुच्छा। गोयमा ! जातिअमदेणं, कुलअमदेणं, बलअमदेणं, रूवअमदेणं, तवअमदेणं, सुयअमदेणं, लाभअमदेणं, इस्सरियअमदेणं उच्चागोयकम्मासरीर० जाव पयोगबन्धे । नीयागोयकम्मासरीर-पुच्छा । गोयमा | जातिमदेणं, कुलमदेणं, बलमदेणं, जाव इस्सरियमदेणं नीयागोयमकम्मासरीर० जाव पयोगबन्धे (८.६)
उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध के हेतु ये हैं : (१) जाति-मद न होना, (२) कुल-मद न होना, (३) बल-मद न होना, (४) रूप-मद न होना, (५) तप-मद न होना, (६) श्रुत-मद न होना, (७) लाभ-मद न होना, (८) ऐश्वर्य-मद न होना और (६) उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोग नामकर्म का उदय । नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध के हेतु ये हैं : (१) जाति-मद, (२) कुल-मद, (३) बल-मद, (४) रूप-मद, (५) तप-मद, (६) श्रुत-मद, (७) लाभ-मद, (८) ऐश्वर्य-मद और