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________________ पुण्य पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी २१ રર૭ इस विषयक 'स्थानाङ्ग' का पाठ इस प्रकार है : चउहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तंजहा-सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं बालतवोकम्मेणं अकामणिज्जराए। (४.४.३७३) 'तत्त्वार्थसूत्र' का पाठ इस प्रकार है : सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि देवस्य । (६.२०) यहाँ यह विशेष ध्यान देने की बात है कि इन हेतुओं का तत्त्वार्थकार ने साता वेदनीय कर्मबंध के हेतुओं में भी स्थान दिया है। शुभ देवायुष्य कर्मबंध के हेतु भी शुभ हैं। २१. शुभ-अशुभ नामकर्म के बंध-हेतु (गा० २७-२८) : यहाँ संकेतित 'भगवतीसूत्र' का पाठ इस प्रकार है : सुभनामकम्मासरीर-पुच्छा । गोयमा ! काउज्जुययाए, भावुज्जुययाए, भासुज्जुययाए अविसंवादणजोगेणं, सुभनामकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे । असुभनामकम्मासरीर-पुच्छा। गोयमा ! कायअणुज्जुययाए, भावअणुज्जुययाए, भासअणुज्जुययाए, विसंवायणाजोगेणं, असुभनामकम्मा० जाव पयोगबंधे (८.६)। शुभ नामकार्मणशरीरप्रयोगबंध के हेतु इस प्रकार हैं : (१) काया की ऋजुता, (२) भाव की ऋजुता, (३) भाषा की ऋजुता, (४) अविसंवादनयोग-जैसी कथनी वैसी करनी और . (५) शुभ नामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म का उदय । अशुभ नामकार्मणशरीरप्रयोगबंध के हेतु इस प्रकार हैं : (१) काया की अनृजुता, (२) भाव की अनृजुता, (३) भाषा की अनृजुता, (४) विसंवादन योग-जैसी कथनी वैसी करनी का अभाव और (५) अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म का उदय । 'तत्त्वार्थसूत्र' में इस विषय का पाठ इस प्रकार है : __ योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्न : । (६.२१)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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