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________________ १६४ नव पदार्थ ४७. तीथंकर गोत बंधे बीस बोल तूं रे लाल, त्यांमें पिण समचे बोल अनेक हो। समचे बोल घणा छै सिधंत में रे लाल, त्यांमें कुण समझे विगर ववेक हो।। ४८. जो अन पुने समचे दीधां सकल ने रे लाल, तो नवोई समचे जाण हो। हिवे निरणो कहूं धूं नवां ही तणो रे लाल, ते सुणज्यो चुतर सुजाण हो।। ४६. अन सचितं अचित दीधां सकल ने रे लाल, जो पुन नीपजे छै ताम हो। तो इमहीज पुन पाणी दीयां रे लाल, लेण सेण वसतर पुन आंम हो।। ५०. काय पुने पिण समचे हुवे रे लाल, तो काया सूं हिंसा कीयां पुन होय हो। नमसकार पुने पिण समचे हुवे रे लाल, तो सकल ने नम्यां पुन जोय हो।। ५१. इमहीज मन पुने समचे हुवे रे लाल, तो मन भुडोइ वरत्यां पुन थाय हो। वले वचन पुणे पिण समचे हुवे रे लाल, मूंडो बोल्याई पुन बंधाय हो।। ५२. मन वचन काया माठा वरतीयां रे लाल, जो लागे छै एकंत पाप हो। तो नवोंई बोल इम जांणजो रे लाल, उथप गई समचे री थाप हो।। ५३. मन वचन काया सूं पुन नीपजे रे लाल, ते निरवद वरत्यां होय हो। तो नवोई बोल इम जांणजो रे लाल, सावद्य में पुन न कोय हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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