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१० - द्रव्य जीव का स्वरूप पृ० ४०; ११. द्रव्य के लक्षण, गुणादि भाव जीव हैं पृ० ४४; १२. जीव शाश्वत अशाश्वत कैसे ? पृ० ४४; १३. आस्रव, संवर, निजरा और मोक्ष भाव जीव हैं पृ० ४५; १४. सावद्य निरवद्य सर्व कार्य भाव जीव हैं पृ० ४५: १५. आध्यात्मिक और लौकिक वीर भाव जीव हैं पृ० ४६ ]
२. अजीव पदार्थ
पृ० ४७-१३२ अजीव पदार्थ के विवेचन की प्रतिज्ञा (दो० १); पांच अजीव द्रव्यों के नाम (गा० १); प्रथम चार अरूपी, पुद्गल रूपी (गा० २) प्रत्येक द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व (गा० ३); धर्म, अधर्म, आकाश अस्तिकाय क्यों ? ( गा० ४ - ६); धर्म, अधर्म, आकाश का क्षेत्र- प्रमाण (गा० ७); तीनों शाश्वत द्रव्य (गा० ८); तीनों के गुण-पर्याय अपरिवर्तनशील (गा० ६); तीनों निष्क्रिय द्रव्य (गा० १०); धर्मास्तिकाय का लक्षण और उसकी पर्याय संख्या (गा० १२); आकाशास्तिकाय का लक्षण और उसकी पर्याय - संख्या (गा० १३); तीनो के लक्षण (गा० १४); धर्मास्तिकाय के स्कंध, देश, प्रदेश ( गा० १५-१६); धर्मास्तिकाय कैसा द्रव्य है ? ( गा० १७); परमाणु की परिभाषा ( गा० १८); प्रदेश के माप का आधार परमाणु (गा० १६-२० ); काल के द्रव्य अनन्त हैं (गा० २१-२२); काल शाश्वत अशाश्वत का न्याय (गा० २३–२६); काल का क्षेत्र ( गा० २७); काल के स्कंध, देश, प्रदेश, परमाणु क्यों नहीं ? ( गा० २८-३४); जघन्य काल ( गा० ३५); काल के भेद (गा० ३६-३८); काल के भेद: तीनों काल में एक से ( गा० ३८); काल-क्षेत्र ( गा० ३९-४०); काल पयार्य : अनन्त (गा० ४०–४२); पुद्गल : रूपी द्रव्य ( गा० ४३); द्रव्य भाव पुद्गल की शाश्वतता- अशाश्वतता (गा० ४४-४५); पुद्गल के भेद ( गा० ४६ ) : परमाणु (गा० ४७-४८ ) ; उत्कृष्ट स्कंध : लोक-प्रमाण (गा० ४९-५०); पुद्गल : गतिमान द्रव्य (गा० ५१); पुद्गल के भेदों की स्थिति (गा० ५२): पुद्गल का स्वभाव ( गा० ५३); भाव पुद्गल : विनाशशील ( गा० ५४); भाव पुद्गल के उदाहरण ( गा० ५५-५८); द्रव्य- पुद्गल की शाश्वतता : भाव पुद्गल की विनाशशीलता ( गा० ५६ - ६२); रचना - स्थान और काल (गा० ६३) ।
टिप्पणियाँ
( १. अजीव पदार्थ पृ० ६६: २. छः द्रव्य पृ० ६७ ३. अरूपी रूपी अजीव द्रव्य पृ० ६८, ४. प्रत्येक द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व पृ० ६८, ५. पंच अस्तिकाय पृ० ६६; ६. धर्म, अधर्म, आकाश का क्षेत्र- प्रमाण पृ० ७२; ७. धर्म, अधर्म, आकाश शाश्वत और स्वतन्त्र द्रव्य