SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी २३ ६७ है । इस अमोनिया पदार्थ में रस और गंध दोनों होते हैं। यह एक सर्व मान्य सिद्धान्त है और आधुनिक विज्ञान शास्त्र का तो मूलभूत सिद्धान्त है कि "असत् की उत्पत्ति नहीं हो सकती और सत् का विनाश नहीं हो सकता।" इस सूत्र के अनुसार अमोनिया में रस और गंध का होना नए गुणों की उत्पत्ति नहीं की सकती परन्तु अमोनिया के अवयव तत्त्व हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के इन्हीं गुणों का रूपान्तर है और किन्हीं गुणों का नहीं । इन अवयव तत्त्वों में यदि वे गुण मौजूद न होते तो उनके कार्य (resultant) अमोनिया में भी ये गुण नहीं आ सकते थे। स्कन्ध में कोई ऐसा गुण नहीं आ सकता जो अणुओं में न पाया जाता हो। इससे अप्रगट होते हुए भी हाइड्रोजन और नाइट्रोजन गैसों में रस और गंध की सिद्धि होती है। इसी तरह इनमें वर्ण साबित किया जा सकता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सभी पुद्गलों में वर्ण, गन्ध और स्पर्श समान रूप से रहते हैं। किसी एक गुण का अभाव नहीं हो सकता । पुद्गल भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्य काल में रहेगा । वह सत् है । उत्पाद, विनाश और ध्रौव्य संयुक्त है अतः द्रव्य है । प्रश्न हो सकता है कि सिर्फ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श ही पुद्गल के गुण क्यों कहे गये हैं, शब्द भी उसका लक्षण होना चाहिए ? जैसे वर्णादि क्रमशः चक्षु इन्द्रिय आदि के विषय हैं वैसे ही शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है अतः उसे भी पुद्गल का गुण मानना चाहिए। इसका उत्तर यह है कि गुण द्रव्य के लिंग (पहचानने के चिन्ह) होते हैं और वे द्रव्य में सदा रहते हैं। शब्द द्रव्य का गुण नहीं हो सकता क्योंकि वह पुद्गल द्रव्य में नित्य रूप से नहीं पाया जाता है, उसे केवल पुद्गल का पर्याय ही कहा जा सकता है। कारण यह है कि वह पुद्गल स्कन्धों के पारस्परिक संर्घष से उत्पन्न होता है। यदि शब्द को पुद्गल का गुण कहा जाय तो पुद्गल हमेशा शब्द रूप ही पाया जाना चाहिए परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं देखा जाता। अतः शब्द पुद्गल का गुण नहीं माना जा सकता । १. Ammonia is a colourless gas, having a powerful pungent smell, and a strong Caustic Soda. (Newth's Inorganic Chemistry p. 304) २. भगवती : १--४
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy