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________________ ६२ नव पदार्थ एक निःश्वास, हृष्ट, अनवकल्य और व्याधिरहित एक जंतु का एक उच्छ्वास और निःश्वास एक प्राण कहलाता है। सात प्रकाण का स्तोक, सात स्तोक का लव ७७ लव का एक मुहूर्त, तीस मुहूर्त्त का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर, पाँच संवत्सर का एक युग, बीस युग का सौ वर्ष, दस सौ वर्ष का एक हजार वर्ष, सौ हजार वर्ष का एक लाख वर्ष, चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग चौरासी लाख पूर्वांग का एक पूर्व और इसी तरह त्रुटितांग, त्रुटित, अडडांग, अडड, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिपूरांग, अर्थनिपूर अयुताग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका होती हैं यहाँ तक गणित है-उसका विषय है उसके बाद औपमिक काल है ।" "हे भगवन् ! औपमिक काल क्या है ।" "सुदर्शन ! औपमिक काल दो प्रकार का है- पल्योपम और सागरोपम ।" "हे भगवन् ! पल्योपम क्या है और सागरोपम क्या है ?" "सुदर्शन ! सुतीक्ष्ण शस्त्र द्वारा भी जिसे छेदा-भेदा न जा सके वह परमाणु है। केवलियों ने उसे आदिभूत प्रमाण कहा है। अनन्त परमाणु समुदाय के समूहों के मिलने से एक उच्छलक्ष्णलक्ष्णिका, आठ उच्छलक्ष्णश्लक्ष्णिका के मिलने से श्लक्ष्य श्लक्ष्णिका, आठ श्लक्ष्ण श्लक्ष्णका के मिलने से एक ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु के मिलने से एक त्रसरेणु आठ त्रसरेणु के मिलने से एक ] रथरेणु, आठ रथरेणु के मिलने से देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों का एक बालाग्र, आठ बालाग्र मिलने से हरिवर्ष के और रम्यक के मनुष्य का एक बालाग्र, हरिवर्ष के और रम्यक के आठ बालाग्र मिलने से हैमवत के और ऐरवत के मनुष्य का एक बालाग्र और हैमवत के और ऐरवत के मनुष्य के आठ बालाग्र मिलने से एक पूर्वविदेह के मनुष्य का एक बालाग्र, पूर्वविर्देह के मनुष्य के आठ बालाग्र मिलने से एक लिक्षा, आठ लिक्षा का एक यूक, आठ यूक का एक यवमध्य, आठ यवमध्य का एक अंगुल, ६ अंगुल का एक पाद, बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल की एक रत्नि (हाथ), अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि, छानबे अंगुल का एक दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है। इस धनुष के माप से दो हजार धनुष का एक गव्यूत, चार गव्यूत का एक योजन होता है।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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