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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी १८-१६ ६१ है'। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश प्रदेशों से असंख्यात अर्थात् कोई असंख्यात प्रदेशी है, कोई अनन्त प्रदेशी, पर काल द्रव्य के एक से अधिक प्रदेश नहीं होते। समय-काल द्रव्य-प्रदेश रहित है अर्थात् मात्र है। आचार्य कुन्दकुन्द अन्यत्र लिखते ___"आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में मंद गति से जाने वाले परमाणु-पुद्गल को जितना सूक्ष्म काल लगता है उसे समय कहते हैं। उसके बाद में और पहले जो अर्थ नित्य भूत पदार्थ है वह कालनामा द्रव्य है। काल द्रव्य के बिना पाँच द्रव्यों के प्रदेश एक अथवा दो अथवा बहुत और असंख्यात तथा उसके बाद अनन्त इस तरह यथा-योग्य सदा काल रहते हैं | काल द्रव्य का समय पर्याय रूप एक प्रदेश निश्चय कर जानना चाहिए। जिस द्रव्य का एक ही समय में यदि उत्पन्न होना, विनाश होना प्रवर्ततता है तो वह काल पदार्थ स्वभाव में अवस्थित है। एक समय में काल पदार्थ के उत्पाद, स्थित, नाश नाम तीनों अर्थ-भाव प्रवर्तते हैं। यह उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप ही काल द्रव्य का अस्तित्व सर्व काल में है। जिस द्रव्य के प्रदेश नहीं है और एक प्रदेश मात्र भी तत्त्व से जानने को नहीं उस द्रव्य को शून्य अस्तित्व रहित समझो।" १८. (गा० ३४) : इस गाथा के भाव के स्पष्टीकरण के लिए देखिए बाद की टिप्पणी नं० २१। १९. काल के भेद (गा० ३५-३७) : स्वामीजी ने इन गाथाओं में जो काल के भेद दिये हैं उनका आधार भगवती सूत्र है। वहाँ प्रश्नोत्तर रूप में काल के भेदों का वर्णन इस प्रकार है : "हे भगवन् ! अद्धाकाल कितने प्रकार का है ?" ___ "हे सुदर्शन ! अद्धाकाल अनेक प्रकार का कहा गया है। दो भाग करते-करते जिसके दो भाग न हो सकें उस कालांश को समय कहते हैं । असंख्येय समयों के समुदाय की आवलिका होती है। संख्यात आवलिका का एक उच्छवास, संख्यात आवलिका का १. पञ्चास्तिकायः १.१०२ २. प्रवचनसार २.४३ : णात्थि पदेस त्ति कालस्म। अमृतचन्द्र टीका-अपद्रेशः कालाणुः प्रदेशमात्रत्वात् ३. वही २.४६ : समओ दु अप्पदेसो ४. प्रवचनसार : २.४७-५२
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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