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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी १४ परमाणु के माप से असंख्यात-संख्या-रहित हैं। इस तरह प्रदेशों की उत्पत्ति परमाणु से होती हैं क्योंकि अविभागी पुद्गल परमाणु केवल प्रदेश मात्र होता है। वह आकाश का सूक्ष्म-से-सूक्ष्म क्षेत्र रोकता है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं "जैसे वे (एक परमाणु बराबर कहे गये) आकाश के प्रदेश परमाणुओं के माप से अनंत गिने जाते हैं, उसी प्रकार शेष धर्म, अधर्म, अजीव द्रव्य के भी प्रदेश परमाणु-रूप मापे से माप हुए होते हैं। अविभागी पुद्गल-परमाणु अप्रदेशी-दो आदि प्रदेशों से रहित अर्थात् प्रदेश-मात्र होता है। उस परमाणु से प्रदेशों की उत्पत्ति कही गयी है। १४. काल द्रव्य का स्वरूप (गा० २१-२२) : इन गाथाओं में स्वामीजी ने काल के विषय में निम्न बातें कही हैं : (१) काल अरूपी अजीव द्रव्य है। (२) काल के अनन्त द्रव्य हैं। (३) काल द्रव्य निरन्तर उत्पन्न होता रहता है। (४) वर्तमान काल एक समय रूप है। . इन पर नीचे क्रमशः विचार किया जाता है : (१) काल अरूपी अजीव द्रव्य है : अहोरात्र, मास, ऋतु आदि काल के भेद जीव भी हैं और अजीव भी हैं-ऐसा उल्लेख ठाणांग में मिलता है। टीकाकार अभयदेव स्पष्टीकरण करते हुए लिखते हैं : 'काल के अहोरात्र आदि भेद जीव या अजीव पुद्गल के पर्याय हैं। पर्याय और पर्यायी की अभेद-विवक्षा से जीव-अजीव के पर्याय-स्वरूप काल-भेदों को जीव अजीव कहा है।' १. प्रवचनसार : अ० २.४५ जध ते णभप्पदेसा तधप्पदेसां हंवति सेसाणं । अपदेसो परमाणू तेण पदेसुब्भवो भणिदो। २. ठाणाङ्ग २.४ ६५ : समयाति वा ...... औसप्पिणीति वा जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति । ३. ठाणाङ्ग २.४.६५ की टीका : समया इति वा आवलिका इति या यत्कालवस्तु तदविगानेन जीवा इति च, जीवपर्यायत्वात पर्यायपर्यायिणोश्च कथञ्चिभेदात्, तथा अंजीवाना--पुद्गलादीनां पर्यायत्वादजीवा हति च।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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