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________________ 274 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण आ - यह वर्ण मातृका पूर्ववर्ती, कीर्तिस्फोटिका एवं साठ योजन पर्यन्त आकारवती है। वायु तत्त्व के समान आस्फालित है, सूर्य ग्रहवती है। ध्वनि तरंग के स्तर पर कंठस्था है । कंठ ध्वनि में उक्त सभी गुण भास्वरित होते हैं । इ - कुंडली सदृश आकार युक्त, पीतवर्णवती, सदा शक्तिमयी, अग्नि तत्त्व युक्त एवं सूर्यग्रह धारिणी 'इ' वर्ण मातृका है । ध्वनि तरंग के स्तर पर तालुस्थानवती है । रि- 'रि' मातृका का विश्लेषण 'अरिहंताणं' के साथ हो चुका है । इसी प्रकार 'आ' एवं 'णं' मातृकाओं का भी विवेचन हो चुका है । यहां ध्यातव्य यह है कि 'रि' एवं 'णं' इन मूर्धा - स्थानीय ध्वनियों के कारण अमृत तत्त्व की प्रधानता हो जाती है । अतः. 'आ' तथा 'इ' कण्ठ्य एवं तालव्य ध्वनियां अत्यधिक शक्तिशालिनी एवं गुणधारिणी हो जाती हैं । आइरियाणं पद की आहत ध्वनि स्तर पर एवं अनाहत स्तर पर प्रखर महत्ता है । अरिहन्त एवं सिद्ध परमेष्ठी तो देव परमेष्ठी हैं । आचार्य परमेष्ठी गुण और भविष्यत् की संभावना से देव हैं, परन्तु व्यवहारतः वे अभी संसारी ही हैं । आचार्य परमेष्ठी की प्रमुखता संसार में रहते हुए व्यवहारिक दृष्टि के साथ सभी को मोक्षमार्ग में प्रवृत्त करने की रहती है । व्यवहार और प्रयोगमय जीवन पर आचार्य परमेष्ठी का बल रहता है । ध्वनि के आधार पर भी यही तथ्य प्रकट होता है । णमो उवज्झायाणं : उ— उच्चाटन वीजों का मूल, अद्भुत शक्तिशाली, पीत चम्पकवर्णी, चतुर्वर्ग- फलप्रद, भूमि तत्त्व युक्त, सूर्यग्रही । मातृका शक्ति के साथ-साथ उच्चारण के समय श्वास नलिका द्वारा जोर से धक्का देने पर मारक शक्ति का स्फोटक । उच्चारण ध्वनि तरंग के आधार पर ओष्ठ ध्वनि युक्त ।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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