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सम्पादकीय
संसार के सभी धर्मों और जातियों में मन्त्र-विद्या अति प्राचीन विद्या है। आज विज्ञान जिन घटनाओं को असम्भव मानता है, मंत्र प्रभाव से वे प्रत्यक्ष देखी जाती है, जिनका उत्तर न विज्ञान के पास है और न ही मनोविज्ञान के पास। अनुभव का सत्य तर्क की कसौटी से ऊपर होता है। विज्ञान की पकड़ से परे होता है। महामन्त्र णमोकार अद्भुत अचिन्त्य प्रभावशाली मंत्र है। यह हमारी आत्मशक्ति की पुष्टि वृद्धि, बाहरी अशुभ शक्तियों से रक्षा और चतुर्मुखी अभ्युदय करने वाला है।
जिस प्रकार लोहे और पारस के बीच में यदि कपड़ा लगा दें तो लोहा वर्षों तक पारस के साथ रहने पर भी लोहा ही रहेगा, जब तक हमारा अज्ञान और अश्रद्धा का परदा नहीं उठेगा हम महामन्त्र के अमृत का स्पर्श नहीं कर पायेंगे । मन्त्र या आराधना के क्षेत्र में श्रद्धा और भक्ति का अत्यन्त महत्त्व है। यदि आपके कण-कण में, रोम-रोम में णमोकार मन्त्र रचा/बसा है, आपको उस पर अटल मास्था है तो वह किसी भी क्षण प्राना प्रभाव दिखा सकता है ?
तीर्थकर के णमोकार विशेषांक में एक घटना छपी थी-कि जामनगर के श्री गुलाबचन्द ने इस णमोकार मन्त्र पर अटल आस्था से कैंसर जैसे रोम से भी मुक्ति प्राप्त की थी। आज के वैज्ञानिक युग. में भी जब चिकित्सा विज्ञान अपनी उन्नति के चरम विकास का दावा कर रहा है। फिर भी डाक्टरों को यह कहते सुना जाता है-रोगी को अब दवा की नहीं दुआ की जरूरत है।
चिकित्सा शास्त्री डॉ. लेस्ली बेदरहेड पाश्चात्य जगत में अध्यात्म चिकित्मा के सिद्धान्तों एवं प्रयोगों को विकसित करने में अग्रणी माने जाते हैं। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "साइकोलॉजी, रिलीजन एण्ड हीलिंग" में उन्होंने सामूहिक प्रार्थना से उद्भूत दिव्य ऊर्जा से कितने ही मरणासन्न व्यक्तियों के स्वस्थ होने की घटनाओं का आंखों देखा विवरण प्रकाशित किया है।
णमोकार मन्त्र से लौकिक लाभ मिलने के अनेकों उदाहरण प्रतिदिन सुनने में आते हैं-किसी का शिरः शून समाप्त हो गया, किसी के बिच्छू का जहर उतर गया, किसी को सर्पदंश से जीवनदान मिल गया, किसी को मूल-मंव की बाधा से मुक्ति मिल गई, किसी को धन की प्राप्ति और किसी को सन्तान-लाभ । णमोकार मन्त्र की महिमा से सम्बद्ध अनगिनत कथाएं प्राचीन ग्रन्थों में बिखरी पड़ी है ? आज भी सैकड़ों संस्मरण प्रकाशित हो रहे हैं।
णमोकार मन्त्र के पांच पदों का स्वरूप-ज्ञान होना अत्यन्त बावश्यक है क्योंकि इससे श्रमा के निर्मल और सुदृढ़ होने में सहायता मिलती है । इष्ट छत्तीसी में पंच परमेष्ठियों का स्वरूप अत्यन्त सरल सुन्दर रूप में दिया गया है