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________________ 358 वैज्ञानिक शब्द से मेरा आशय विज्ञानपरक न होकर अधिक मात्रा में क्रमबद्ध, तर्कसंगत एवं सप्रमाण होना रहा है। हां, जो भी सम्भव हो सका है, मैंने वैज्ञानिक मान्यताओं का भी आश्रय लिया है। इस पुस्तक को इस दिशा में मैं अपना प्रथम प्रयास मानता हूं। मैं समय रहते इस पुस्तक में संकेतित बिन्दुओं पर विस्तार से काम करूंगा। ___ यह कृति प्राप्त कृतियों के साथ रहकर भी अपनी अस्मिता रखती है। णमोकार मन्त्र विश्वजनीन अनाद्यनन्त मन्त्र है। यह मन्त्र संसार का संस्कार कर उसे अध्यात्म में परिवर्तित करने की अद्वितीय क्षमता रखता है। ध्वनिसिद्धान्त, रंग-चिकित्सा, मणि-विज्ञान एवं ध्यान और योग के धरातल पर यह मन्त्र क्या कहता है, क्या घोषित करता है और कहां ठहरता है, सुधीवृन्द देखें, समझें। -मन्त्र-शक्ति और उसकी महत्ता पर भी स्वतन्त्र चर्चा है, अक्षरशः विवेचन है; परखें । एक किंचिज्ञ कुछ भी दावा तो नहीं कर सकता, परन्तु ईमानदारी का आश्वासन तो दे ही सकता है। एक बात और-धामिक उच्चता या आध्यात्मिक पराकाष्ठा सामान्य मानव मस्तिष्क की पकड़ से परे होने के कारण आश्चर्य या चमत्कार कही जाती है, यह किसी धर्म की अनिवार्यता है, अन्यथा वह धर्म नहीं होगा। पूर्णतया जागुत मूलाधार शक्ति का सहज शब्द-उद्रेक मन्त्र होता है। आभार इस पुस्तक के कुछ लेख 'तीर्थंकर' पत्रिका में सन् 1985-86 में प्रकाशित हुए और फिर 'णाणसायर' पत्रिका ने सभी लेखों को क्रमश :प्रकाशित किया। श्री मेघराज जी तेजस शक्ति सम्पन्न हैं, बड़ी लगन से आपने पुस्तक छापी है। आपको शुद्ध हृदय से साधुवाद समर्पित करता हूं। महाकवि कालीदास के शब्दों में मैं केवल इतना ही इंगित करना चाहता हूं-"आ परितोषात् विदुषां, न साधुमन्ये प्रयोग विज्ञानम्।" भवदीय 13, शक्तिनगर, पल्लववरम्, मद्रास रवीन्द्र कुमार जैन
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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