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________________ महामन्त्र णमोकार और ध्वनि विज्ञान अनुच्चरित विचार और भाव अव्यक्त भाषा के रूप में तथा उच्चरित भाव और विचार व्यक्त भाषा के रूप में आज भी भाषा वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत है । भाषा को महत्ता और सार्थकता को अत्यन्त दूरदर्शिता से हमारे प्राचीन ऋषियों, मुनियों एवं ज्ञानियों ने समझा और अनुभव किया था । उसी के फलस्वरूप शब्द ब्रह्म, स्फोटवाद और शब्द शक्ति का आविष्कार हुआ। दिव्य ध्वनि और ओंकारात्मक निरक्षरी ध्वनि का खिरना ( झरना) इसी सन्दर्भ की विस्तृति में समझना कठिन नहीं होगा । बैखरी, मध्या, पश्यन्ती और परा - भाषा के ये चार रूप उसकी मुखर स्थूलता से सूक्ष्मतम मानसिकता की यात्रा के क्रमिक सोपान हैं । भाषा मानव की जन्मजात नहीं, अर्जित सम्पत्ति है । उच्चरित भाषा का अधुनातन विकास मानव के सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास का कीर्तिमान है। मानव के मुखद्वार से निःसृत सार्थक, यादृच्छिक एवं व्यवस्थित ध्वनि प्रतीकों का वह समुदाय भाषा है जिसके द्वारा समान भाषा-भाषी परस्पर अपने विचारों और भावों का आदान-प्रदान करते हैं । भाषा विज्ञान की इस परिभाषा का ध्यान रखकर और प्राचीन शास्त्रीय मान्यताओं का ध्यान रखकर, हम महामन्त्र णमोकार का ध्वनि-विज्ञान के सन्दर्भ में अध्ययन कर रहे है । हम प्रथमतः ध्वनि का स्वरूप, ध्वनियन्त्र, ध्वनियों का वर्गीकरण एवं ध्वनि परिवर्तन पर संक्षेप में विचार करेंगे । और फिर महामन्त्र में निहित ध्वनि तरंगों, ध्वनि प्रतीकों और ध्वनि - मण्डलों का अध्ययन तुलनात्मक अनुसन्धान एवं वैषम्यमूलक अनुसन्धान के धरातल पर करेंगे। हम वर्ण - मातृका शक्तियों का भी इसी सन्दर्भ में अध्ययन करेंगे ।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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