________________
मन्त्र और मातृकाएं 49 ... यह कहा जा चुका है कि 'अ' से लेकर 'ह' तक में सभी वर्गों का समावेश हो जाता है अतः अहं को सभी वर्गों का संक्षिप्त रूप कहा जा सकता है। 'र' सक्रिय शक्ति का बीज है। इस प्रकार अहं में मातकाओं की सभी शक्तियौं का समावेश हो जाता है। 'अहँ यह शब्द ज्ञान का ध्वनि का-सरस्वती देवी का वीज है-आधार है।
अहं के उच्चारण का मुख्य प्रयोजन है सुषम्ना को स्पंदित करना। इसमें 'अ' चन्द्रशक्ति का बीज है। 'ह' सूर्य शक्ति का और 'र' अग्नि शक्ति का वीज है। ये वर्ण क्रमशः इड़ा सुषुम्ना और पिंगला को प्रभावित करते हैं। इस प्रभाव से कुंडलिनी जागृत होती है और वह ऊर्ध्व गगन के लिए तैयार होती है। इसी प्रकार ह्रीं के उच्चारण से विश्लेषण करने पर उक्त निष्कर्ष प्राप्त होता है।
प्रत्येक मातृका (वर्ण) विशिष्ट तत्त्व, विशिष्ट चक्र, विशिष्ट आकृति, विशिष्ट नाड़ी और विशिष्ट रंग से सम्बन्धित होने के कारण विशिष्ट शक्ति को उत्सन्न करता है। वह विशिष्ट बल का प्रतिनिधित्व करता है। यह शक्ति मानव के बाह्य जगत को जिस प्रकार प्रभावित करती है उसी प्रकार अन्तर्जगत को। योग शास्त्र में प्रत्येक वर्ण का विशिष्ट शक्ति का वर्णन किया गया है। ये बीजाक्षर हैं अतः इनका व्यापक अर्थ एवं मात्रा तो वोजकोश एवं व्याकरण द्वारा ही पूर्णतया समझा जा सकता है। संकेत रूप में यहां प्रस्तुत हैअ-अव्यय, व्यापक, ज्ञानात्मक, आत्मत्य द्योतक, शक्ति बीज प्रणव
बीज का जनक। आ-अव्यय, कामनापूरक, शक्ति बीज का जनक, समृद्धि, कीर्ति
दायक। इ-गतिदायक, सक्षमी प्राप्ति में सहायक, अग्नि बीज, मार्दवयुक्त। ई-अमृत बीज का आधार, कार्य साधक, ज्ञानवर्द्धक, स्तम्भन, मोहन,
जुम्मन में सहायक। उ-उच्चाटन एवं मोहन का आधार, शक्तिदायक, मारक (प्लुत
उच्चारण के साथ) ज-उच्चाटक, मोहात्मक, ध्वंसक ऋ- ऋद्धिदायक, सिद्धिदायक, शुभ ।