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मन्त्र और मातृकाएं 2473 मन्त्र और मातृका शक्ति :
___ मन्त्र के सन्दर्भ में जब हम मातृका विद्या को समझना चाहते हैं तो हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि मातका विद्या में केवल ध्वनियों एवं वर्गों का उच्चारण या आकृति ही सम्मिलित नहीं है बल्कि उन ध्वनियों का मन, शरीर और जगत पर पड़ने वाला प्रभाव भी सम्मिलित है। इसे दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि मातृका विद्या के दो आयाम हैं-ज्ञानात्मक और क्रियात्मक । ज्ञानात्मक पहलू उच्चारण किये जाने वाले वर्षों का एवं उन वर्गों से बने हुए शब्दों के अर्थ का संकेत देता है, तो क्रियात्मक पहलू उन शब्दों के उच्चारण से होने वाले प्रभाव को और शक्ति के परिवर्तन को सूचित करता है।
उदाहरण के रूप में 'राम' और अर्ह' इन शब्दों को लिया जा सकता है। जब हम राम शब्द का उच्चारण करते हैं तो इस उच्चारण से हमारे सामने भूतकाल में हुए पुरुषोत्तम राम की मानसिक प्रतिकृति उभर आती है। उनके व्यक्तित्व की झांकी स्पष्ट हो जाती है । परन्तु साथ ही इस उच्चारण में एक गूढ़ तत्त्व भी है। राम शब्द के उच्चारण में र+आ, म् +अ इतने वर्गों का उच्चारण निहित है। 'र' का उच्चारण करते समय हमारी जिह्वा मूर्धा को छूती है। मूर्धा को छुए बिना 'र' का उच्चारण नहीं हो सकता और मूर्धा को परम तत्व का स्थान माना गया है। 'र' के बाद हम 'अ' का उच्चारण करते हैं । यह कण्ठ ध्वनि है। कंठ को जीव का स्थान माना गया है। अत: 'र' के पूर्ण उच्चारण से यह स्पष्ट हो गया कि परमात्मतत्त्व के साथ जीव का संयोग होता है। दोनों का मिलन होता है। इसके बाद 'म' के उच्चारण में ओप्ठ युगल का अनिवार्य संयोग होता है। 'म' के उच्चारण में शक्ति अन्दर से ऊपर की ओर उठती है और आकाश की महातरंगों में सम्मिलित हो जाती है । अव 'राम' शब्द के पूर्ण उच्चारण का अर्थ हुआ कि 'रा' के उच्चारण में जीवात्मा और परमात्मा का संयोग होता है और 'म' के उच्चारण से जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाती हैउसमें उतरने लगती है । स्पष्ट है आत्मा ही परम निर्विकार अवस्था को प्राप्त कर परम+आत्मा=परमात्मा हो जाती है। अपनी ही प्रसुप्त, दमित एवं आच्छादित आत्मा की विदेशी तत्त्वों से मुक्ति धर्म की सबसे बड़ी कसौटी है।