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342 8 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
शब्द सुनते ही - अर्जुन का अर्थ चैतन्य प्रबुद्ध हुआ -- अर्जुन ने तुरन्त बाण से पृथ्वी छेद डाली और पानी की धारा धरा पर आ गयी । पितामह ने तृप्त होकर पानी पिया और प्राण त्याग दिये। इस बात
अर्जुन ही समझ सका ।
इन वर्णात्मक मातृकाओं में लौकिक एवं पारलौकिक अनन्त फल देने की अपार शक्ति है । जब ये मातृकाएं मन्त्रों से परिणत हो जाती हैं शक्ति अणुबम की भांति इनमें संगठित हो जाती है यह शक्ति होते हुए भी अज्ञानी और कुपात्र को लाभ नहीं पहुंचाती है क्योंकि उसको इसके बोध एवं विधि से परिचय ही नहीं होता है । उदाहरणार्थ एक जगली व्यक्ति को यदि लाखों रुपयों की कीमत का हीरा प्राप्त भी हो जाए तो वह तो उसे एक कांच का टुकड़ा ही समझेगा । हमारे धार्मिक भाई-बहिनों में भी विश्वास और बोध की कमी होने के कारण उन्हें मातृकामय मन्त्रां का लाभ नहीं होता । मातृका - शक्ति (अर्थात् वर्णात्मक) के विषय में यह कथन ध्यातव्य है—
मन्त्राणां मातृभूता च मातृका परमेश्वरी ।" --यज्ञ वैभव, अध्याय 4 "ज्ञानस्यैव द्विरूपस्य परापर विमदमः ।
स्यादधिष्ठानमाधारः शक्ति रेकंव मातृका ।" - शिवसूत्रवार्तिक- 23 मातृका वर्ण कर्म :
1. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लृ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः
2. क, ख, ग, घ, ङ
3. च, छ, ज, झ, ञ
4. ट, ठ, ड, ढ, ण
5. त, थ, द, ध, न
6. प, फ, ब, भ, म
7. य, र, ल, व
8. श, ष, स, ह, क्ष
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समस्त मातृतकाओं की शक्ति, रंग, देवता, तत्त्व तथा राशि आदि पर अनेक प्राचीन जैन एवं इतर ग्रन्थों में गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया है । केवल इन पर ही एक विशाल ग्रन्थ लिखा जा सकता है । व्याकरण और बीजकोशों में इनका समग्र विवेचन है ही। यहां पाठकों की जानकारी के लिए मातृका-सार-चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है