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णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता 1 332 परन्तु इतिहास का इतिहास मानव परम्परा और विश्वास में होता है जिसका मूल प्राप्त कर पाना काफी कठिन ही नहीं असंभव भी है।
फिर भी प्राप्त इतिहास क्या है ? अर्थात ऋषि, आचार्य अथवा लेखक ने कब इस मन्त्र का उल्लेख किया। रचना कब हुई, यह बताना तो संभव नहीं है, किसने रचना की, यह भी बता पाना संभव नहीं है। परन्तु प्राप्त वाङ्मय के आधार पर णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता पर विचार एक सीमा तक तो किया ही जा सकता है।
"अनादि द्वादशांग जिनवाणी का अंग होने से यह अनादि मूलमन्त्र कहा जाता है। 'षट्खण्डागम' के प्रथम खण्ड जीवट्ठाड़ के प्रारम्भ में आचार्य पुष्पदंत द्वारा यह मन्त्र मंगलाचरण रूप में अंकित किया गया है। जिस पर धवला टीका के रचयिता आचार्य वीरसेन ने इसे परम्परा-प्राप्त निबद्ध मंगल सिद्ध किया है। क्योंकि मोक्षमार्ग, उसके उपदेप्टा और साधक भी अनादि से चले आ रहे हैं। आचार्य शिव कोटि कृत 'भगवती आराधना' की टीका के अनुसार यह मन्त्र द्वादशांग रचयिता गणधर कृत है। तीर्थंकर और गणधर अनादिकाल से होते चले आ रहे हैं।" इस मान्यता के आधार पर महावीर के गणधर गौतम के समय और कर्त त्व के साथ महामन्त्र को जोड़ा गया है। गौतम गणधर का समय ई० पू० का ही है।
सज्र स्वामी ने चौदह आगमों का सार लेकर णमोकार मन्त्र की खोज की, यह भी एक मान्यता है। महाराजा खारवेल तथा कलिंग की गुफाओं में महामन्त्र के दो पद टंकित हैं-णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धं । इससे भी रचयिता और समय का पता नहीं लगता है। खारवेल का समय ई० पू० द्वितीय शती का है। शिला-लेख का समय 152 ई०
_ "आचार्य भद्रबाहु के अनुसार नंदी और अनुयोग द्वार को जानकर तथा पंचमंगल को नमस्कार कर सूत्र का प्रारम्भ किया जाता है। संभव है इसीलिए अनेक आगम-सूत्रों के प्रारम्भ में पंच नमस्कार महामन्त्र लिखने की पद्धति प्रचलित हुई। जिनभद्रगणी श्रमण ने उसी आधार पर नमस्कार महामन्त्र को सर्वश्रुतान्तर्गत बतलाया। उनके अनुसार पंच नमस्कार करने पर ही आचार्य सामायिक और क्रमशः शेष श्रुतियों को पढ़ाते थे। प्रारम्भ में नमस्कार मन्त्र का पाठ देने और