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४. पक्षी के समान ऊपर की ओर चलना। ५. बंदर के समान छलांग भर कर सिर में पहुँचना ।
कुंडलिनी- जागरण या चैतन्य स्फुरण ही योग का लक्ष्य होता है । प्रश्न १०२ अहं के ध्यानमूलक उच्चारण से क्या होता है? उत्तर : अहँ के पवित्र - शुद्ध ध्यानमूलक उच्चारण का प्रयोजन सुषुम्ना
(वक्षस्य - वक्ष मध्यस्थ नाड़ी) को स्पन्दित करना है । इसमें अ चन्द्रशक्ति का बीज है । 'ह' सूर्य शक्ति का और 'र' अग्नि - शक्ति का बीज है । ये वर्ण क्रमशः इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को प्रभावित करते हैं । इस प्रभाव से कुंडलिनी जागृत होती है और
वह ऊर्ध्व गमन के लिए तैयार होती है । प्रश्न १०३. महामन्त्र णमोकार का जिनके जीवन पर चमत्कारी
प्रभाव पड़ा, ऐसे किन्हीं दो प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम ..
और सम्बद्ध घटनाएँ बताइए। स्वर्गीय गणेश प्रसाद जी वर्णी जब दूसरी बार श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा पर गये, तब परिक्रमा करते समय उन्हें बड़ी जोर की प्यास लगी । उनका चलना मुश्किल हो गया । वे पर्याप्त वयोवृद्ध तो थे ही । वे महामन्त्र का स्मरण करते हुए भगवान को उलाहना देने लगे कि प्रभो, शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि सम्मेद शिखर जी की वन्दना करनेवाले को तिर्यन्च-नरक गति नहीं मिलती। प्यास के कारण यदि मैं आर्तभाव से मरूँगा तो तिर्यंच गति में जाऊँगा । क्या शास्त्र में लिखा मिथ्या हो जाएगा। थोड़ी देर बाद एक यात्री उधर से निकला और उसने बताया कि पास में ही एक स्वच्छ तालाब है । वर्णीजी वहाँ गए । पास में छन्ना था ही । पानी छान कर पिया । प्यास शान्त हो गयी । याद आया कि पहले भी यहाँ परिक्रमा की थी, तब तो यह तालाब:था नहीं। गौर से देखने पर न तो वहाँ आस-पास, आगे-पीछे वह यात्री था, न तालाब ।
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