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मन्त्र और मन्त्रविज्ञान 21 1. पुरुष मन्त्र, स्त्री मन्त्र, नपुंसक मन्त्र । 2. सिद्ध, साध्य, सुसिद्ध, अरि मन्त्र । 3. पिण्ड, कर्तरी, बीज, माला मन्त्र। 4. सात्विक, राजस, तामस। 5. साबर, डामर।
पुरुष मन्त्र उन्हें कहते हैं जिनका देवता पुरुष होता है। पुरुष देवता के मन्त्र सौर कहलाते हैं और स्त्री देवता से सम्बन्ध रखने वाले मन्त्र सौम्य। जिन मन्त्रों का देवता स्त्री होती है उन्हें विद्या कहते हैं। सामान्यतया तो सभी को मन्त्र ही कहा जाता है। जिन मन्त्रों के अन्त में 'हं' और फट' रहता है उन्हें पुं० मन्त्र, और दो रूः इस वर्ण से जिस मन्त्र की समाप्ति हो उसे स्त्री मन्त्र कहते हैं। नमः से समाप्त होने वाले मन्त्र नपुंसक मन्त्र कहलाते हैं। 'प्रयोगसार' का मत इससे कुछ भिन्न है। उनके अनुसार वषट् और फट से समाप्त होने वाले मन्त्रों को पुरुष, वौषट् और स्वाहा से स्त्री तथा 'हुँ' नमः से समाप्त होने वाले मन्त्रों को नपुंसक कहा गया है। एक अक्षरी मन्त्र पिण्ड मन्त्र, दो अक्षरों वाले कर्तरी मन्त्र और तीन से लेकर नौ वर्गों तक के मन्त्र बीज मन्त्र कहलाते हैं। इससे बीस वर्ण पर्यन्त के मन्त्र, मन्त्र के ही नाम से जाने जाते हैं। इससे अधिक वर्ण संख्या वाले मन्त्र माला मन्त्र कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त मन्त्रों के छिन्न, उद्ध, शक्तिहीन आदि शताधिक अन्य भेद भी होते हैं। ये सभी यहां प्रासंगिक नहीं हैं। उक्त विवरण केवल तुलनार्थ एवं ज्ञानार्थ उदधत किया गया है।
मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र-इन तीनों की सानुपातिक संयुक्त क्रिया ही किसी साधक को पूर्णता तक पहुंचाती है। केवल मन्त्र की साधना 1. सौरा: पुं० देवता मन्त्रास्ते च मन्त्राः प्रकीर्तिताः। : सौम्याः स्त्री देवतास्तद्वद्विद्यास्ते इति विश्रुत :।।
' (शारदा तिलक-राघवी टीका पृ० 79) 2. पुंस्त्री नपुंसकात्मानो मन्त्राः सर्वे समीरिताः। ___ मन्त्राः पुंदेवता ज्ञेया विद्याः स्त्रोदेवताः स्मृताः ।।58॥
(शारदा तिलक तन्त्र 2 पटल) 3. पुं० मन्त्राः हुम्फडान्ताः स्यु द्विठान्ताश्च स्त्रियो मताः ।
नपुंसका नमोऽताः स्युरित्युक्ताः मन्त्रास्त्रिधाः ॥58।। वही