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उत्तर:
प्रश्न ८५. जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक प्राणी का जीवन
मरण, सुख-दुख निज कर्मानुसार ही होता है। तब इस महामन्त्र की शक्ति का क्या महत्व है? सिद्धान्तत: यह सच है कि हमारा जन्म मरण कृत कर्मानुसार होता है फिर भी हम अपने पवित्र आचरण, 'तप और मन्त्र साधना से अपने मनोबल को पर्याप्त बढ़ा कर कर्मों को भीण कर सकते हैं - उनके प्रभाव को न के बराबर कर सकते हैं। सर्प दंश यदि चींटी दंश में बदल जाए तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि ही है। फिर मन्त्राराधना से भविष्य तो उज्जवल होगा ही और वर्तमान में हम एक गौरवमय, शान्त और पवित्र जीवन जी सकेंगे। मन्त्राराधना से हममें मानसिक संतुलन, धैर्य और सत्संघर्ष की अपार शक्ति आ जाती है । हम अकाल मृत्यु से बच सकते हैं।
सच तो यह है कि मन्त्र भक्त में मृत्यु का डर लाता ही नहीं है। प्रश्न ८६. इस महामन्त्र की महिमा बताइए -
इस महामन्त्र की महिमा नित्य पूजा की पीठिका में इस प्रकार वर्णित है - "अपवित्रः पवित्रों वा सुस्थितों दुस्थितोऽपि वा ध्यायेत पंच नमस्कारं सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥ अपराजित मन्त्रोऽयं सर्व विघ्न विनाशकः मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं मंगलं मतः ॥" अर्थात् भक्त भले ही शरीर से अपवित्र हो या पवित्र, उचित आसन में हैं या नहीं, परन्तु यदि वह इस पंच नमस्कार मन्त्र का ध्यान (मन से स्मरण) करता है तो वह सब पापों से मुक्त ो जाता है। यह महामन्त्र अपराजित (अपराजेय) और सर्व विघ्न विनाशक है और सर्वश्रेष्ठ मंगल है।
उत्तर:
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