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और प्रकारान्तर से भोगों का लाइसेन्स ले रहे हैं । अत: यह महामन्त्र भक्त का मनोबल जगाकर, रक्षक देव-देवाङ्गनाओं के माध्यम से या निजी भीतरी ऊर्जा के द्वारा भक्त की हर प्रकार से रक्षा करता है, यह प्रकट - व्यावहारिक तथ्य हमें मानना ही होगा । अव्यावहारिक आदर्शवाद आत्मघाती होता है । मन्त्र विरोधियों को गुरिल्ला प्रवृत्ति त्यागनी होगी। भक्त भगवान से या मन्त्र से भोग विलास, डकैती, दुराचार आदि कभी नहीं माँगता । बस वह तो संसार के अत्याचारों और अन्यायों से रक्षा चाहता है, न्याय चाहता है । यह माँग अत्यन्त सहज है - किसी भी धर्म का प्राण है ।
"इक गाँव पति जो हो वे, सो भी दुखिया दुःख खोवे; तुम तीन भुवन के स्वामी
दुख मैटो अन्तर्यामी ।" इन पक्तियों में निहित जीवन का कटु सत्य हम केवल सिद्धान्त की, शास्त्र की और निश्चय की बात कहकर झुठला नहीं सकते। . भक्ति का प्राण तत्व भजन और भक्त का समर्पण भाव है जो उसे
अभय देता है। प्रश्न ७३. ओम् शब्द में पंच परमेष्ठी कैसे गर्भित हैं - सिद्ध
कीजिए। उत्तर: अरिहन्त अशरीरी (सिद्ध) आचार्य उपाध्याय मुनि (साधु)
अ + अ + आ = आ + उ = ओ + म् = ओम् ओम् परमात्मा शक्ति बीज है । यह सार्वदेशिक सार्वकालिक अपराजेय शक्ति विशेष है । यह उच्चरित हो प्राण को जागृत कर सुषुम्ना मार्ग से सहस्रार तक ले जाती है । - फिर दिव्य चेतना में विलीन हो जाती है।
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