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असामनता अरिहन्त अवस्था में सामान्य केवली में घातिया कर्मों के क्षय से
उत्पन्न अनन्त चतुष्ट्य (शुद्धात्मा के गुण) मात्र होते हैं। तीर्थंकर केवली में अनन्त चतुष्ट्य के अतिरिक्त ४२ अतिशयमूलक गुण भी माने जाते हैं । ये सभी ४२ गुण देवकृतं, पुण्यकृत एवं
शरीरज हैं जो संसार समाप्ति के साथ समाप्त हो जाते हैं । ४६ गुणों में - अतिशय ३४ (१० जन्म के, १० केवल ज्ञान के १४ देवकृत )
प्रातिहार्य ८ (ये भी बाह्य विभूतियाँ हैं।) अनन्त चतुष्ट्य ४ (आत्मा के निजी गुण हैं)
प्रश्न ७२
उत्तर:
पंच नमस्कार मन्त्र में चूलिका का क्या महत्त्व है? महामन्त्र का चूलिका भाग इसके फलात्मक महत्व को प्रतिपादित करता है - वह है -
ऐसो पंचणमोकारों सब्ब पावरप्पणासणो।
मंगलाणं च सब्बेसिं पढ़मं हवइ मंगलम् ।। अर्थात् यह पंच नमस्कार महामन्त्र सब पापों का नाश करनेवाला है । समस्त मंगलों में पहला मंगल है । यहाँ एक सचाई (जीवन की प्रतिक्षण अनुभूत वास्तविकता) पर ध्यान जाना आवश्यक है । यह मन्त्र मूलत: आध्यात्मिक है यह सच है, परन्तु इससे भक्त के सांसारिक कष्ट, संकट और पाप भी छूटते कटते हैं - कटे हैं । इसके सैंकड़ों उदाहरण हमारे पुराणों में हैं और हमारे जीवन में भी हैं । भक्त स्वस्थ शरीर, स्वस्थमन और स्वस्थ वातावरण में रहकर ही साधना कर सकता है । हम संसार में रहकर उसमें जीकर उसे गाली देकर अपनी शान बधारते हैं - आत्म प्रवंचना करते हैं । हमें संसार से नहीं संसारिकता से विरक्ति रखना है । कितना अन्तर्विरोध है हमारे जीवन में । आत्मा की विशुद्धि के नाम पर हम अपने मूल चरित्र को त्याग को अनुपादेय कह कर त्याग रहे हैं
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