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उत्तर:
प्रश्न ५४ : मन्त्रों का प्रयोजन क्या है?
मन्त्रों का प्रयोजन यही है कि हम उचरित भाषा के स्थूल माध्यम (बैखरी) से सूक्ष्मतम परा रूप तक पहुंचे । शब्द से अर्थ - अर्ध से भाव और भाव स्वभाव (आत्म स्वरूप) तक पहुँचे । मन्त्रोच्चारण में स्पन्दनों की लय और ताल का बहुत महत्व है।
लय और ताल ठीक होने पर ज्ञान और भाव में वृद्धि होगी। प्रश्न ५५ : तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने णमोकार मन्त्र द्वारा कौन - सा
चमत्कार दिखाया? उत्तर: कमठ नामक मिथ्यात्वीं पंचाग्नि तप तप रहा था कि वहीं से
भगवान पार्श्वनाथ विहार करते हुए निकले । उनकी दृष्टि आग के ढेर में जलते हुए एक नाग-नागिनी के जोड़े पर पड़ी । जोड़ा मरणासन्न था । तुरन्त प्रभु ने उसे आग में से निकाला और णमोकार महामन्त्र का तीन बार श्रवण कराया । नाग-नागिनी मरकर भवनवासी देव-देवांगना हुए और भगवान पार्श्वनाथ के चिर
सेवक बने । यह है मन्त्र का चमत्कारी प्रभाव । प्रश्न ५६ णमोमार महामन्त्र में प्रमुख भावना कौन सी है? उत्तर : १. आत्मा से परमात्मा बनने की।
२. बाहर से भीतर उतरने की ।
३. द्रव्य से भाव बनने की। प्रश्न ५७ णमो पद के अनेक अर्थ बनते हैं। कौन सा अर्थ इस
मन्त्र की आत्मा से जुड़ता है? १. णमो - कृतज्ञता प्रकाशन हेतु, (Gratitude) २. णमो - पापों की स्वीकृति (Confession) ३. णमो - समर्पण भाव (Surrender)
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