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आ गयी । उसने क्रोध में पागल होकर छहों गुंडों की हत्या की । अपनी पत्नी को भी समाप्त कर दिया। फिर तो उस पर हत्या का भूत ही सवार हो गया । वह नगर के बाहर रहने लगा । जो भी उसको दिखता उसकी हत्या कर देता । नगर में आतंक छा गया । नगर के भीतर के लोग भीतर और बाहर के बाहर ही रहने लगे। सम्पर्क टूट गया । वहाँ से निकलने का किसी का साहस ही नहीं होता था। उसी समय श्रमण भगवान महावीर विहार करते हुए वहाँ पधारे । राजा श्रेणिक भगवान के दर्शन करना चाहते थे, पर वे विवश थे। तब सुदर्शन सेठ ने प्राण हथेली पर लेकर भगवान के दर्शन करने का निश्चय किया । बस राजा से अनुमति ली और चल पड़े । नगर के बाहर पैर रखते ही उनका अर्जुन से सामना हुआ । अर्जुन ने अपना कठोर मुद्गल सुदर्शन को मारने के लिए उठाया, पर आश्चर्य की बात यह हुई कि अर्जुन हाथ उठाए हुए कीलित हो कर रह गया । यक्ष शक्ति भी कीलित हो गयी । क्यों? सेठ सुदर्शन ने परम शान्त चित्त से महामन्त्र णमोकार का स्तवन प्रारम्भ कर दिया और ध्यानास्थ खड़े रहे । कुछ देर तक यही स्थिति रही। मन्त्र की संरक्षिणी देवियाँ सेठ की रक्षा के लिए आ गयी थी। बस नमस्कार करके यक्ष भाग गया । अब अर्जुन असहाय हो गया । उसे अपनी भूख-प्यास और असहायावस्था का तीव्र बोध हुआ । उसने सेठ सुदर्शन से अत्यन्त विनम्र भाव से क्षमा माँगी । भगवान की शरण में जाकर मुनिव्रत धारण किया। नगर वासियों को उसे देखते ही बहुत क्रोध आया । शब्दों और पत्थरों द्वारा मुनि अर्जुन का तिरस्कार हुआ । अर्जुन ने यह सब बड़े धैर्य के साथ सहा, वह अविचल रहा । सुदर्शन सेठ से उसने महामन्त्र को गुरु मन्त्र के रूप में धारण कर लिया था। धीरे-धीरे लोगों की धारणा बदली। अर्जुन ने अन्ततः सल्लेखना धारण की और आत्मा की सर्वोच्च अवस्था (मुक्ति) प्राप्त की। .
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