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________________ प्रश्न ४. इस महामन्त्र का पद-क्रम ठीक है क्या? उत्तर पदक्रम ठीक है। स्पष्टीकरण- यह पदक्रम व्यावहारिक और लोकोपकारक धरातल पर किया गया है। वस्तुतः सिद्ध परमेष्ठी मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं अतः सर्वोत्तम हैं - जबकि अरिहन्त परमेष्ठी चारधातिया कर्मों का क्षय कर चुके हैं और सशरीर संसार में हैं । उनका मोक्ष गमन सुनिश्चित है । उनसे जन समुदाय को जिनवाणी श्रवण और प्रत्यक्ष चारित्र्य का सीधा लाभ होता है अत: उन्हें पद्क्रम में प्राथमिकता दी गयी है । इसी प्रकार साधु परमेष्ठी को पंचम स्थान पर स्थापित किया गया है, यद्यपि वे विशुद्ध मुनिव्रत का पालन करते हैं और संसार के रागद्वेष से पर्याप्त मात्रा में परे हैं । अत: उनका स्थान तीसरा हो सकता था । परन्तु आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठी समग्र मुनिसंध में चरित्र-पालन एवं जिनवाणी अध्ययन का निरन्तर सम्बर्धन करते हैं अतः उन्हें ३ और ४ थे पद पर रखा गया है । आचार्य एवं उपाध्याय परमेठी स्वतः मुनि होते हैं । वे विशुद्धात्मा होते हैं । । प्रश्न ५. क्या सभी परमेष्ठी समान महत्व के हैं? उत्तर : हाँ है। स्पष्टीकरण अरिहन्त और सिद्ध देव (परमात्मा) हैं और शेष तीन परमेष्ठी गुरु हैं । आरम्भ के दो निश्चयनय से और बाद के तीन संभावना परक निश्चय से समान महत्त्व के हैं। प्रश्न जब हमारा जन्म और मरण पूर्वार्जित कर्म के अनुसार ही होता है, तब इस मन्त्र से क्या होगा? "मणि मन्त्र तन्त्र बहु होइ, मरते न बचावे कोई' आपका प्रश्न ठीक है, परन्तु कर्मों के फल को तपस्या, भाव निर्मलता और मन्त्रसाधन द्वारा काफी हल्का किया जा सकता है । अपनी आध्यात्मिक शक्ति के प्रकाश में कर्मों को परास्त किया जा उत्तर: 176
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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