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________________ णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव है 149 2 भोपाल- मैना सुन्दरी समस्त जैन शाखाओं में श्रीपाल और उसकी पत्नी मैना सुन्दरी की कथा प्रसिद्ध है । श्रीपाल की वाल्यावस्था में ही उसके पिता राजा सिंहरथ की मृत्यु हो गई । श्रीपाल के चाचा ने तुरन्त राज्य पर अधिकार कर लिया और श्रीपाल की मां मन्त्रियों की सहायता से अपनी और अपने पुत्र की जान बचाने के लिए निकल भागी । जंगलों में भटकते-भटकते श्रीपाल को कुष्ट रोग हो गया। किसी तरह उज्जैन नगरी में माता-पुत्र पहुंचे । उज्जैन के राजा के दो पुत्रियां थीं- सुरसुन्दरी और मैना सुन्दरी । सुरसुन्दरी हर बात में अपने पिता का झूठा समर्थन करके लाभ उठा लेती थी, जबकि मैना सुन्दरी पिता का आदर करते हुए भी सत्य का समर्थन करती थी । एक बार राजा ने भरी सभा में अपनी दोनों बेटियों को बुलाया. और पूछा - "तुम्हें सब प्रकार के सुख देने वाला कौन है ?" सुरसुन्दरी ने उत्तर दिया, "पूज्य पिताजी, मैं जो कुछ भी हूं, आपकी ही कृपा से हूं | आप ही मेरे भाग्य विधाता हैं ।" इस उत्तर से राजा का अहंकार तुष्ट हुआ और उसने हर्ष प्रकट किया । अब मैना सुन्दरी को उत्तर देना था। उसने कहा, "पिताजी, मैं जो कुछ भी हूं, अपने पूर्वजन्म के शुभाशुभ कर्मों के कारण हूं | आप भी जो कुछ हैं अपने शुभ कर्मों के कारण हैं । मेरा और आपका पुत्री पिता का नाता तो निमित्त मात्र है ।" I इस उत्तर से पिता - राजा को बहुत गुस्सा आया । राजा ने सुरसुन्दरी का विवाह एक राजकुमार से किया और उसे बहुत अधिक धन-सम्पत्ति देकर विदा किया । मैना सुन्दरी का विवाह कुष्ट रोगी श्रीपाल से किया गया और दहेज में कुछ नहीं दिया गया। राजा ने कहा- "मैना सुन्दरी अब देख अपने कर्मों का फल | अपनी किस्मत को बदलकर दिखाना ।" मैना सुन्दरी ने विनयपूर्वक अपने पिता से कहा, "पिताजी, मैं. आपको दोष नहीं देती हूं । मेरे भाग्य में होगा तो अच्छा समय आएगा मैं धर्म पर और महामन्त्र पर अटूट श्रद्धा रखती हूं ।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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