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________________ 2143 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण “सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः" अर्थात् सम्यकदर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक चारित्र्य का एकीकृत्त त्रिक ही मोक्षमार्ग है-धर्म है। मानन मात्र में भावना के दो स्तर होते हैं । ऐन्द्रिक सुखों की ओर आकृष्ट करने वाले भाव-हीन भाव कहलाते हैं। इनमें तात्कालिक आकर्षण और प्रत्यक्ष सुख झलकता है/मिलता है अतः मानव इनसे प्रभावित होकर इनका अनुचर बन जाता है। दूसरे भाव आत्मिक स्तर के उच्च भाव हैं। इनमें त्वरित सुख नहीं है। धीरे-धीरे इनमें से स्थायी सुख प्राप्त होता है। ये भाव हैं--अहिंसा, दया, क्षमा, वात्सल्य, त्याग, तप, संयम एवं परसेवा । उच्च स्तरीय भावों में प्रवृत्ति कम ही होती है। ज्यों-ज्यों संसार में भोग, विलास की सामग्री का अम्बार जुटता है, त्यों-त्यों मानव की लौकिक प्रवृत्ति भी बढ़ती जाती है। आज गत युगों की तुलना में हमारी सभ्यता (भौतिक जिजीविषा) बहुत. अधिक विकसित हो चुकी है। अनाज उत्पादन, शस्त्र निर्माण, औद्योगिक विकास, चिकित्सा विज्ञान, यातायात के साधन, दूरदर्शन आदि के आविष्कारों ने आज के मानव को इतना सुविधाजीवी बना दिया है, इतना सांसारिक और पंगु बना दिया है कि बस वह एक यन्त्र का अंश मात्र बनकर रह गया है । वह जीवन के, नये मूल्य बना नहीं पाया है और पुराने मल्यों को हीन और अनुपयोगी समझकर छोड़ चुका है। वह त्रिशंकु की तरह अनिश्चितता में लटक रहा है। दो विश्व युद्धों ने उसके जीवन में अनास्था, निराशा और अनिश्चितता भर दी है। वह अज्ञात और अनिर्दिष्ट दिशाओं में भागा चला जा रहा है। आशय यह है कि आज का मानव जीवन मूल्यों एवं आध्यात्मिक मूल्यों की असंगति और अनिश्चितता से बड़ी तेजी से गुजर रहा है। इस प्रसंग में महाकवि भर्तृहरि का एक प्रसिद्ध पद्य उदाहरणीय है-- "अज्ञः सुखमाराध्यः, सुखतर माराध्यते विशेषज्ञः। ज्ञान लव दुविदग्धं, ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥". नीतिशतक-3 अर्थात् मूर्ख व्यक्ति को सरलता से समझाया जा सकता है, विशेषज्ञ को संकेत मात्र से समझाया जा सकता है, किन्तु जो अर्धज्ञानी है उसे ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते हैं। स्पष्ट है कि आधुनिक मानव ततीय विश्वयुद्ध के ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है। कभी-किसी क्षण में वह
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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