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& 146 & महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
अंजन प्रभाव में आ गया और हार चुराने के लिए अंजन (मंत्रित अंजन) लगाकर रात में निकल पड़ा। हार चुराने में वह सफल हो गया। परन्तु रास्ते में दो बातें प्रतिकूल बन पड़ी। एक तोहार को ज्योति बाहर चमक उठी और शुक्ल पक्ष के कारण, अजन भी अकिंचित्कर हो गया। और अंजन चोर भी प्रकट रूप से पहरेदारों को दिख गया। पहरेदारों ने पीछा किया। चोर भाग कर समीपवर्ती
नशान में एक वृक्ष के नीचे शरण खोजता हुआ पहुंचा। उसने ऊपर देखा। वहाँ 108 रस्सियों का एक जाल लटक रहा था। नीचे विविध प्रकार के (32 प्रकार के) शूल, कृपाण, बरछी, भाला आदि शस्त्र ऊर्ध्वमुखी होकर गाड़े गये थे। एक व्यक्ति वहाँ णमोकार मन्त्र का जाप करता हुआ क्रमशः एक-एक रस्सी काटता जाता था। परन्तु उसका चित्त घबराहट से भरा हुआ था, वह कभी ऊपर चढ़ता तो कभी नीचे उतरता था। अंजन चोर ने उससे पूछा, भाई, तुम यह क्या कर रहे हो? उसने कहा मैं मन्त्र द्वारा आकाश-गामिनी विद्या सिद्ध कर रहा हूं। अंजन चोर यह सुनकर हंसने लगा और बोला, आप तो डरपोक हैं, आपका विश्वास भी कमजोर है, आपको विद्या सिद्ध नहीं हो सकती। आप मंत्र मुझे बता दीजिए मैं सिद्ध करूंगा। मुझे मरने का भी डर नहीं है। मैं यदि मरूँ भी तो अच्छे कार्य में ही मरना चाहता हूं। तब वारिषेण नाम के उस डरपोक साधक ने अंजन चोर को णमोकार मन्त्र बताया और मन्त्र सिद्धि की विधि भी बतायी। बस अंजन चोर ने पूरी श्रद्धा के साथ निर्भय होकर मन्त्र पाठ किया और एक-एक आवृत्ति पर एक-एक रस्सी काटता गया। अन्त में 108वीं रस्सी कटते ही, वह नीचे गिरे, इसके पूर्व ही, आकाश गामिनी विद्या ने प्रकट होकर उसे (अंजन चोर को) ऊपर उठा लिया। अंजन चोर को विद्या ने नमस्कार किया और कहा, मैं आपसे प्रसन्न हूं, आपके हर सत्कार्य में सहायता करूंगी। . अंजन चोर को इस घटना से ऐसी लोकोत्तर मानसिक-शान्ति मिली कि बस उसने तुरन्त सुमेरू पर्वत पर पहुंचकर दीक्षा ली और कठिन तपश्चर्या करके अष्टकर्मों का नाश किया तथा मोक्ष प्राप्त किया-अर्थात् समस्त संसार के वन्धनों से मुक्त होकर आत्मा की निर्मलतम स्थिति को प्राप्त किया।