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णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव 1458 अंजन चोर की कथा
दिगम्बर आम्नाय के कथा ग्रन्थों में अंजन चोर की कथा बहुत प्रसिद्ध है। महामन्त्र की महिमा ने एक अत्यन्त पतित व्यक्ति को किस "प्रकार जीवन की महानता तक पहुँचाया-यह बात इस कथा द्वारा बड़ी प्रभाविकता से व्यक्त की गयी है।
ललितांग देव जो अत्यन्त व्यभिचारी चोर और हिंसक प्रवत्ति का व्यक्ति था, वही बाद में अंजन चोर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह चोर कर्म में इतना निपुण था कि लोगों के देखते-देखते ही उनकी वस्तुओं का अपहरण कर लेता था।
यह स्वयं सुन्दर और बली भी था। इसका राजगृही नगरी की. प्रधान नर्तकी-वेश्या से (मणिकांचना से) अपार प्रेम था। अंजन चोर अपनी इस प्रेमिका पर इतना अधिक आसक्त था कि उसके एक संकेत पर अपने प्राण भी दे सकता था-कुछ अतिमानवीय अथवा अन्यायपूर्ण कार्य करने को तैयार था। ठीक ही है-विषयासक्त व्यक्ति का सब कुछ नष्ट होता ही है।
"विषयासक्त चित्तानां गुणः को वा न नश्यति ।
न वैदुष्यं न मानुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक् ॥" अर्थात् विषयासक्त व्यक्ति का कौन-सा ऐसा गुण है जो नष्ट नहीं हो जाता, सब कुछ नष्ट हो जाता है । वैदुष्य, मनुष्यता, कुलीनता तथा सत्यवादितां आदि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं।
एक दिन मणिकांचना ने अंजन चोर से कहा, प्राणवल्लभ, प्रजापाल महाराज की रानी कनकवती के गले में ज्योतिप्रभा नामक हार आज मैंने देखा है। मैं उसे किसी भी कीमत पर चाहती हूं। आप उसे लाकर मुझे दीजिए। मैं उसके बिना जीवित नहीं रह सकती। अंजन चोर ने प्रेमिका को समझाया कि दो-चार दिन में वह उक्त हार ला देगा। उसे कृष्ण पक्ष की विद्यासिद्ध है-उसका अंजन कृष्ण पक्ष में ही काम करता है, अभी शुक्ल पक्ष समाप्ति पर है। थोड़ी-सी प्रतीक्षा कर लो।
प्रेमिका ने अंजनप्रेमी से कहा, मैं बस प्राण ही त्याग दूंगी। यही मेरे और आपके प्रेम की परीक्षा है। आप तुरन्त हार ला दें, अन्यथा कल मैं जीवित न रहूंगी।