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1408 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
और श्रेष्ठतम प्राध्यापक परम गुरु उपाध्याय परमेष्ठी हम सब का सदा मंगल करें। समस्त मुनि संघ के ये सर्वोच्च अध्यापक होते हैं । रत्नत्रय (सम्यक् दर्शन - ज्ञान - चारित्र्य ) की निरन्तर आराधना में लीन परम अपरिग्रही साधु परमेष्ठी हम सब का मंगल करें।
किसी भी व्यक्ति या वस्तु की महानता उसमें निहित गुणों के कारण ही मानी जाती है । फिर ये गुण जब स्व से भी अधिक पर कल्याणकारी अधिक होते हैं तभी उनकी प्रतिष्ठा होती है । इस कसौटी पर पंच परमेष्ठी बिल्कुल खरे उतरते हैं। जन्म, मरण, रोग, बुढ़ापा, भय, पराभव, दारिद्रय एवं निर्बलता आदि इस महामन्त्र के स्मरण एवं जाप से क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं । णमोकार मन्त्र के माहात्म्य वर्णन को समझ लेने पर फिर और अधिक समझने की आवश्यकता नहीं रह जाती है—
अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितो पि वा । ध्यातेत् पंच नमस्कारं सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥1॥ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् परमात्मानं स बाह्याभ्यन्तरे शुचिः ॥2॥ अपराजित मन्त्रोऽयं सर्वविघ्नविनाशनः । मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं मंगलं A: 11311 विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति शाकिनीभूत पन्नगा । विषो निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे || 4 || मन्त्रं संसारं सारं त्रिजगदनुपमं सर्व पापारि मन्त्रं, संसारोच्छेद मन्त्रं विषम विषहरं कर्म निर्मूल मन्त्रम् । मन्त्रं सिद्धि प्रदानं शिव सुख जननं केवलज्ञान मन्त्रं, मन्त्रं श्रीजैन मन्त्रं जप जप जपितं जन्म निर्वाण मन्त्रम् 11511आकृष्टिं सुर सम्पदां विदधते मुक्तिश्रियो वश्यतां, उच्चाटं विपदां चतुर्गतिभुवां विद्वेषमात्मेनसाम् । स्तम्भं दुर्गमनंप्रति प्रयततो मोहस्य सम्मोहनं, पायात् पंचनमस्कार क्रियाक्षरमयी साराधना देवता ||6|| अहं मित्यक्षरं ब्रह्म वाचकं परमेष्ठिनः । प्रणमाम्यहम् ॥1718
सिद्ध चक्रस्य सबीजं सर्वतः