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णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव 213783
मन्त्र बीज है और समस्त जैनागम वक्ष-रूप हैं। कारण पहले होता है और कार्य से छोटा होता है। यह मन्त्र उपादान कारण है।
प्राय: समस्त जैन शास्त्रों के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में प्रत्यक्षतः णमोकार महामन्त्र को उद्धत कर आचार्यों ने उसकी लोकोत्तर महत्ता को स्वीकार किया है, अथवा देव, शास्त्र और गुरु के नमन द्वारा परोक्ष रूप से उक्त तथ्य को अपनाया है। यहां कुछ प्रसिद्ध उद्धरणों को प्रस्तुत करना पर्याप्त होगा।
इस महामन्त्र की महिमा और उपकारकता पर यह प्रसिद्ध पद्य द्रष्टव्य है
एसो पंच णमोकारो, सव्वपापप्पणासणो। - मंगलाणं च सन्वेसि, पढ़मं हवइ मंगलं ॥
अर्थात् यह पंच नमस्कार-मन्त्र समस्त पापों का नाशक है, समस्त मंगलों में पहला मंगल है, इस नमस्कार मन्त्र के पाठ से समस्त मंगल होंगे। वास्तव में मल महामन्त्र तो पंचपरमेष्ठियों के नमन से सम्बन्धित पांच पद ही हैं। यह पद्य तो उस महामन्त्र का मंगलपाठ या महिमा-गान है। धीरे धीरे भक्तों में यह पद्य भी णमोकार मन्त्र का अंग सा बन गया और इसके आधार पर महामन्त्र को नवकार मन्त्र अर्थात् नौ पदों वाला मन्त्र भी कहा जाता है। .
इसी महत्त्वांकन की परम्परा में मंगलपाठ का और भी विस्तार हुआ है। चार मंगल, चार लोकोत्तर और चार का ही शरण का मंगलपाठ होता ही है। ये चार हैं-अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवलीप्रणीत धर्म । इसमें आचार्य और उपाध्याय को धर्म प्रवर्तक प्रचारक वर्ग के अन्तर्गत स्वीकार कर लिया गया है अतः खुलासा उल्लेख नहीं है। कभी-कभी अल्पज्ञता और अदूरदर्शिता के कारण ऐसा भी कतिपय लोगों को भ्रम होता है कि आचार्य और उपाध्याय को संसारी समझकर छोड़ दिया गया है। वास्तव में ये दो परमेष्ठी धर्म की जड़ जैसी महत्ता रखते हैं। इन्हें कैसे छोड़ा जा सकता है। पाठ द्रष्टव्य है
• चार-मंगल
: चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं साहू मंगलं, केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं।