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________________ णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव अनादि-अनन्त णमोकार महामन्त्र के महामन्त्र के माहात्म्य का अर्थ है उसकी महती आत्मा (आत्म-शक्ति) अर्थात् अंतरंग और मूलभूत शक्ति। इसी को हम उस मन्त्र का गौरव, यश और महत्ता कहकर भी समझते हैं। यह मूलतः आत्म-शक्ति का, आत्म-शक्ति के लिए और आत्म-शक्ति के द्वारा अपरिमेय काल से कालजयी होकर, समस्त सृष्टि में जिजीविषा से लेकर भभक्षा तक की सन्देश तरंगिणी का महामन्त्र है। इस मन्त्र की महिमा का जहां तक प्रश्न है वह तो हमारे समस्त आगमों में बहत विस्तार के साथ वर्णित है। यह मन्त्र हमारी आत्मा की स्वतन्त्रता अर्थात् उसकी सहजता को प्राप्त कराकर उसे परमात्मा बनाने का सबसे बड़ा, सरलतम और सुन्दरतम साधन है। यही इसकी सबसे बड़ी महत्ता है। इसके पश्चात् हमारी समस्त सांसारिक उलझनें तो इस मन्त्र के द्वारा अनायास ही सुलझती चली जाती हैं। पारिवारिक कलह, शारीरिक-मानसिक रुग्णता, निर्धनता, अपमान, अनादर, सन्तानहीनता आदि बातें भी इस महामन्त्र के द्वारा अपना समाधान पाती हैं। आशय यह है कि यह मन्त्र मानव को धीरेधीरे संसार में रहकर संसार को कैसे जीतना है यह सिखाता है और फिर मानव में ही ऐसी आन्तरिक शक्ति उत्पन्न करता है कि मानव स्वत: निलिप्त और निर्विकार होने लगता है। उसे स्वात्मा में ही परम तृप्ति का अनुभव होने लगता है। अतः इस महामन्त्र के भी शारीरिक और आत्मिक धरातलों को पूरी तरह समझकर ही हम इसकी सम्पूर्ण महत्ता को समझ सकते हैं। आगमों में वर्णित मन्त्र-माहात्म्य --- णमोकार महामन्त्र द्वादशाङ्ग जिनवाणी का सार है। वास्तव में जिनवाणी का मूल स्रोत यह मन्त्र है ऐसा समझना न्यायसंगत है। यह
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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