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________________ 21344 महामंत्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण मंगल पाठ की इन पंक्तियों में चार को ही मंगल स्वरूप माना गया है। ये चार हैं-अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवली द्वारा प्रणीतधर्म। उक्त चार ही संसार में श्रेष्ठ हैं। मैं इन चारों की शरण लेता हूं और किसी की नहीं। यहां ध्यान देने की बात यह है कि णमोकार मन्त्र को नवकार का विस्तार देते समय उसके अक्षुण्ण रूप की रक्षा करते हुए उसके फल और महत्त्व को भी उसमें मिला लिया गया है। परन्तु मंगल पाठ में केवल अरिहन्त, सिद्ध और साधु को ही लिया गया गया है, केवली प्रसीण धर्म की महत्ता की शरण ली गयी है। आचार्यों और उपाध्यायों को छोड़ दिया गया है। वास्तव में रत्नत्रय को विशदता और चारित्र्य की उदात्तता के ध्यान से सम्भवतः ऐसा किया गया होगा। अरिहन्त और सिद्ध तो देव ही हैं और साधु भी देवतुल्य ही हैं। आचार्य और उपाध्याय को केवली प्रणीत धर्म के व्याख्याता के रूप में चतुर्थ मंगल के अन्तर्गत गर्भित करके समझना समीचीन होगा। ओंकारात्मक संक्षिप्तता और सुकरता के कारण इस महामन्त्र को ओंकारात्मक भी माना गया है। विद्वानों और भक्तों का एक शक्तिशाली वर्ग है जो पंच नमस्कार मन्त्र को ओंकार का ही विकसित रूप मानता है। ओंकार में पंच परमेष्ठी गभित हैं ऐसी उस वर्ग की मान्यता है। सभी. वों में इस मान्यता का आदर है। ओंकार में पंचपरमेष्ठी इस प्रकार गभित हैं1. अरिहन्त 2. (सिद्ध) अशरीरी - अ 3. आचार्य अ + अ + आ - आ 4. उपाध्याय . - उ आ+उ=ओ 5. (साधु) मुनि - म् ओ+म् =ओम् इसी पंचपरमेष्ठी युक्त ओंकार के विषय में यह श्लोक सर्वविदित.
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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