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1322 महामन्त णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेशणा म्यंजन मातृकाएं
क ख ग घ ङ च छ ज झ, ट, ठ, ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म य र ल व श ष, स, ह
ध्वनि सिद्धान्त के अनुसार उच्चारण स्थान की एकता के कारण कोई भी वर्गाक्षर वर्ग का प्रतिनिधित्व कर सकता हैं। णमोकार मन्त्र में व्यंजन मातृकाओं को समझने में इस सिद्धान्त का ध्यान रखना है। .. 'पुनरक्त व्यंजनों के बाद कुल व्यंजन मन्त्र में हैं
ण्+म् + + ह+त् + स् + य+र++व+ज् +झ+ह,
उक्त व्यंजन ध्वनियों को वर्ण मातृकाओं में इस प्रकार घटित किया जा सकता है___घकवर्ग, ज=चवर्ग, ण =टवर्ग, धतवर्ग, म=पवर्ग, य, र, ल, व, स= श, ष, स, ह।
अतः णमोकार महामन्त्र में समस्त स्वर एवं व्यंजन मातृका ध्वनियां विद्यमान हैं
मन्त्र सूत्रात्मक ही होते हैं । अतः मातृका ध्वनियों को सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक पद्धति में ही ग्रहण किया जा सकता है। संकेत अवश्य ही व्याकरण एवं भाषा विज्ञान सम्मत होना चाहिए। डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री जी ने उक्त विश्लेषण क्रम अपनाया है। इस विश्लेषण में उनके क्रम से सहायता ली गयी है। क्षत्र, ज्ञ ये तीन स्वतन्त्र व्यंजन नहीं हैं, ये संयुक्त हैं। इन्हें इसीलिए मातृकाओं में सम्मिलित नहीं किया गया है। संयुक्त रूप से अंशान्वय से इन्हें भी क, त्, ज के रूप में उक्त मन्त्र में स्थान है ही। विभिन्न नाम
इस महामन्त्र को भक्ति, श्रद्धा और तर्क के आधार पर अनेक नाम दिए गए हैं। इनमें णमोकार मन्त्र, पंच नमस्कार मन्त्र, पंच परमेष्ठी मन्त्र, महामन्त्र और नवकार मन्त्र । नवकार मन्त्र को छोड़कर अन्य नामों में नाम मात्र का ही अन्तर है बाकी तो मूल मन्त्र वही है जिसमें पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।