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________________ 2 126 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्बेषण "गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पायें | बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दिया बताय ॥" साखी में गुरु का विनय गुण और महिमा वर्णित है । गुरु को देव, ब्रह्म, विष्णु और महेश्वर मानने की भारतीय आस्था आज भी अक्षुण्ण है। "गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुः, गुरुदेवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥" "ज्ञान के पांच भेद हैं किन्तु उनमें श्रुतज्ञान को छोड़ शेष चार तो स्वगुण मोनधर्मी हैं । श्रुतज्ञान ही स्व एवं अन्य सभी का उपकार कर सकता है । अतः श्रुतज्ञान को ज्ञान का जनक कहा जाता है जिससे चारों ज्ञान रूप पुत्र पैदा हो सकते हैं। हमें ऐसे श्रुतज्ञानधारी उपाध्याय महाराज से श्रुतज्ञान प्राप्त कर उत्तरोत्तर केवलज्ञान की प्राप्ति करनी है और इसके लिए एकमात्र आधार उपाध्याय परमेष्ठी हैं ।" " विश्वास धर्म की जड़ है और इस जड़ की जड़ है। जब तक ज्ञानहीन विश्वास रहेगा तब तक प्राणी का चित्त अस्थिर रहेगा । ज्ञान नेत्र ही वास्तविक नेव है । | यह नेव उपाध्याय परमेष्ठी अर्थात् विद्यागुरु की सत्कृपा से ही क्रियाशील होता है । मानव एक अनगढ़ पाषाण है उसमें अन्तर्निहित प्रतिभा और ज्ञान का प्रकाशन - सौन्दर्य और देवत्व का उद्भावनउदृकन शिल्पी गुरु — उपाध्याय द्वारा ही होता है । णमो लोए सव्व साहूणं 1 नरलोक के समस्त साधुओं को नमस्कार हो । ये मुनि निरन्तर अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित एवं वीर्य आदि रूप विशुद्ध आत्मा के स्वरूप में लीन रहते हैं । शेष चार परमेष्ठी मुनि या साधु अवस्था में दीक्षित होकर सुदीर्घ साधना के अनन्तर ही मुक्ति के अधिकारी होते हैं । अतः साक्षात् मुक्ति स्वरूप इन परम विरागी साधुओं को मनसा, वाचा, कर्मणा नमस्कार हो । अरिहन्त और सिद्ध तो साक्षात् देवस्वरूप हैं, परन्तु साधु तो अभी देव मार्ग पर हैं और मुक्ति के आकांक्षी हैं। यह ● 'सर्वधर्म सार - महामन्त्र नवकार' - पृ० 92
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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