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108 महामन्त्र
णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
अवना है जो अपने आलम्बन के प्रति पूर्णतया एकाग्र होती है । एकाकी चिन्तन ध्यान है । चेतना के विराट आलोक में चित्त विलीन हो जाता है ।"
श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया से प्राणायाम का सम्बन्ध बहुत अधिक नहीं है, यह ध्यान में रखना है । प्राणायाम की साधना के विभिन्न उपाय हैं। श्वास-प्रश्वास की क्रिया उनमें से एक है । प्राणायाम का अर्थ है प्राणों का संयम । भारतीय दार्शनिकों के अनुसार सम्पूर्ण जगत् दो पदार्थों से निर्मित है । उनमें से एक है आकाश । यह आकाश एक सर्वायुस्यूत सत्ता । प्रत्येक वस्तु के मूल में आकाश है । यही आकाश वायु, पृथ्वी, जल आदि रूपों में परिचित होता है। आकाश जब स्थूल तत्त्वों में परिचित होता है । तभी हम अपनी इन्द्रियों से इसका अनुभव करते हैं । सृष्टि के आदि में केवल एक आकाश तत्त्व रहता है यह आकाश किस शक्ति के प्रभाव से जगत् में परिणत होता है- प्राण शक्ति से । जिस प्रकार इस प्रकट जगत् का कारण आकाश है उसी प्रकार प्राण शक्ति भी है।
प्राण का आध्यात्मिक रूप - योगियों के मतानुसार मेरुदंड के भीतर इड़ा और पिंगला नाम के दो स्नायविक शक्ति प्रवाह और मेरुदंडस्थ मज्जा के बीच एक सुषुम्ना नाम की शून्य नली है । इस शून्य नली के सबसे नीचे कुण्डलिनी का आधारभूत पद्म अवस्थित है । वह त्रिकोणात्मक है । कुण्डलिनी शक्ति इस स्थान पर कुंडलाकार रूप में अवस्थित है जब यह कुंडलिनी शक्ति जगती है, तब वह इस शून्य नली के भीतर से मार्ग बनाकर ऊपर उठने का प्रयत्न करती है और ज्योंवह एक-एक सोपान ऊपर उठती है, त्यों त्यों मन के स्तर पर स्तर खुलते चले जाते हैं और योगी को अनेक प्रकार की अलौकिक शक्तियों का साक्षात्कार होने लगता है। उनमें अनेक शक्तियां प्रवेश करने लगती हैं । जब कुंडलिनी मस्तक पर चढ जाती है, तब योगी सम्पूर्ण रूप से शरीर और मन से पृथक् होकर अपनी आत्मा में लीन हो जाता है । इस प्रकार आत्मा अपने मुक्त स्वभाव की उपलब्धि करती है ।
कुंडलिनी को जगा देना ही तत्त्व-ज्ञान, अनुभूति या आत्मानुभूति का एकमात्र उपाय है। कुंडलिनी को जागृत करने के अनेक उपाय है । किसी की कंडलिनी भगवान के प्रति उत्कट प्रेम से ही जागृत होती है ।