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पाण्डुलिपि - निर्माण से लेकर मुद्रित होने तक एक-एक अक्षर की छान-बीन का परिश्रम-साध्य कार्य मुनि श्री महेन्द्र कुमार ने किया है, जिसके लिए उनके प्रति विशेष कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ।
प्रूफ संशोधन के कार्य में हमारे शोध विभाग के श्री रामस्वरूप सोनी, डॉ. परमेश्वर सोलंकी आदि का सक्रिय सहयोग रहा, इसके लिए हम उनके प्रति हार्दिक आभार अभिव्यक्त करते हैं ।
हम आशा करते हैं विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रस्तुत पाठ्यपुस्तक से नया आलोक और नई प्रेरणाएं मिलेंगी जो उनके जीवन-पथ को उजागर करने में प्रमुख भूमिका निभाएगी ।
लाडनूं (राजस्थान) अगस्त, १९९०
श्रीचन्द बैंगानी कुलपति जैन विश्व भारती