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आदि से कला - जगत् को महिमा मंडित किया है और व्यापक भौगोलिक प्रसार-क्षेत्र से जुड़कर विश्व के विस्तृत भू-भाग को प्रभावित किया है ।
प्रस्तुत पुस्तक युवाचार्य महाप्रज्ञ जैसे महान् दार्शनिक, जैन दर्शन एवं संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान् तथा जैन-दर्शन के प्रायोगिक क्षेत्र के प्रथम पुरस्कर्ता के निदेशन में उनकी महत्त्वपूर्ण कृति 'जैन दर्शन: मनन और मीमांसा' के आधार पर तैयार की गई है । यह ध्यान रखा गया है कि पुस्तक में प्रचुर रूप में तुलनात्मक अध्ययन के लिए सामग्री दी जाये । वैदिक, बौद्ध, सांख्य आदि अन्य भारतीय दर्शन और आधुनिक भौतिक विज्ञान, मनोविज्ञान, जीव विज्ञान आदि के परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक विषय की प्रस्तुति की गई है।
पुस्तक का समाकलन युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी के मंगल आशीर्वाद एवं प्रेरक सम्बोध से ही सफलतापूर्वक हो सका है। इसके लिए हम उनके पावन चरणों में श्रद्धावनत हैं । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ का सशक्त निदेशन स्वयं पुस्तक के कण-कण में मुखर हो रहा है । उनके प्रति भावपूर्ण समर्पण अभिव्यक्त करते हुए हमें अन्तस्तोष उपलब्ध हो रहा है 1
जैन दर्शन : मनन और मीमांसा के सम्पादक विद्वद्वर मुनिश्री दुलहराजजी के प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, जिनकी बदौलत हमारा श्रम काफी सरल हो गया है ।
पुस्तक के समाकलन में जैन विश्व भारती के प्राध्यापक गण का प्रेमपूर्ण सहयोग मिला है जिनमें पं. विश्वनाथ मिश्र, डॉ. परमेश्वर सोलंकी, श्री रामस्वरूप सोनी, श्री बच्छराज दूगड़ आदि के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है ।
अजमेर के श्री मांगीलाल जैन की सामयिक सलाहें पुस्तक को विद्यार्थी के लिए उपयुक्त बनाने में कार्यकारी रही हैं। उनके प्रति हार्दिक आभार । हमें आशा है कि जैन दर्शन और संस्कृति के अध्ययन के लिए विद्यार्थी वर्ग को यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी ।
दिनांक ३० जुलाई, १९९० लाडनूं (राजस्थान)
मुनि महेन्द्र कुमार भंवरलाल जोशी