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सम्बोध "जैन-विद्या' भारत की प्राचीनतम विद्या-शाखाओं में से एक प्रतिष्ठित विद्या-शाखा है। किसी भी विद्या-शाखा का संबंध संप्रदाय से नहीं होता। विद्या सदा संप्रदायातीत होती है। पूजा-पाठ का संबंध संप्रदाय विशेष से होता है। विद्या कोई पूजा-पाठ नहीं है। वह चिन्तन, मनन और अनुभव से निष्पन्न एक बोध-धारा है।
. जैन-विद्या ने नयवाद और अनेकांतवाद का समन्वयकारी सूत्र दिया है। उससे दार्शनिक धाराओं के बीच दूरियाँ कम की जा सकती हैं, खाइयाँ पाटी जा . सकती हैं, तटस्थ दृष्टि से विचार-प्रवाह के आकलन का अवसर मिल सकता है।
अजमेर विश्वविद्यालय के कुलपति तथा कुल-समिति ने जैन विद्या के विषय को विद्यार्थी के लिए सुलभ बनाकर एक आवश्यकता की सम्पूर्ति की है।
प्रस्तुत पुस्तक के संकलन और सम्पादन में मुनि महेन्द्रकुमार और डॉ. भंवरलाल जोशी ने काफी श्रम किया है, विद्यार्थी के लिए इसे सहज सुगम बनाने का यत्न किया है। मुझे विश्वास है इससे विद्यार्थीगण लाभान्वित होगा। जीवन-विज्ञान और जैन-विद्या इन दोनों का योग अध्यात्म और दर्शन का योग है। यह योग भौतिकता-प्रधान वातावरण में एक नए प्राण के संचार जैसा होगा। भौतिकता और अध्यात्म तथा अध्यात्म और विज्ञान के प्रति एक सामंजस्यपूर्ण दर्शन की आवश्यकता है। प्रस्तुत प्रयत्न से उसकी सम्पूर्ति हो सकेगी।
दि. ११.७.९० पाली (राजस्थान)
आचार्य तुलसी