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________________ _२६६ परिणाम परिणमन पर्याय पर्यायार्थिक नय पलायनवाद पुद्गल पृथ्वीकायिक जीव पौद्गलिक प्रतिलेखन प्रदेश जैन दर्शन और संस्कृति परिणमन को परिणाम भी कहते हैं, जो जीव आदि द्रव्यों की सूक्ष्म अवस्थाएं हैं, जिनमें सूक्ष्म परिवर्तन घटित होता रहता है। जैसे जीव के विभिन्न परिणाम होते हैं - कर्म बंधन के कर्म को रोकने आदि । परिवर्तन । प्रत्येक द्रव्य में सतत चलने वाली परिवर्तन को परिणमन कहते हैं। 1 शाब्दिक अर्थ है— अवस्था का परिवर्तन । पूर्व आकार (अवस्था) के परित्याग और उत्तर आकार की उपलब्धि को पर्याय कहते हैं । पर्याय सदा बदलती रहती है । यह द्रव्य का बदलने वाला धर्म है। पर्याय द्रव्य और गुण — दोनों की होती है । जब वस्तु को केवल पर्याय की दृष्टि से देखा जाता है, तब उस दृष्टिकोण को पर्यायार्थिक नय कहा जाता है । देखें, द्रव्यार्थिक नयः । संसार के कर्त्तव्यों से विमुख होकर भाग छूटना - संन्यासी बन जाना । जैन दर्शन में भौतिक तत्त्व (physical order of existence) के लिए प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द जिसमें समस्त जड़ पदार्थ (matter) और सभी प्रकार की जड़ ऊर्जाओं का समावेश हो जाता है । जैन दर्शन के अनुसार पृथ्वी यानी मिट्टी, खनिज पदार्थ आदि “ जीव" होते हैं। इन जीवों को पृथ्वीकायिक जीव की संज्ञा दी गई है— पृथ्वी है काया जिसकी, वह पृथ्वीकायिक । पुद्गल का और पुद्गल से सम्बन्धित । देखें, पुद्गल । जैन साधु प्रतिदिन अपने पास रखी हुई सभी वस्तुओं – वस्त्र, पात्र आदि का निरीक्षण करते हैं, इसे प्रतिलेखन कहते हैं। निरीक्षण का उद्देश्य है, वस्तुओं में कोई जीव-जन्तु हो, तो उसे देखकर सावधानीपूर्वक हटाना । द्रव्य का निरंश अवयव । किसी भी द्रव्य का वह संलग्न सूक्ष्म अंश जिसे दो भागों में विभाजित नहीं
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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