________________
जैन धर्म का प्रसार
२३९ मन्दिर है। जैन तीर्थों में यह आदि तीर्थ माना जाता है। इसका दूसरा नाम पुण्डरीक है। प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन यहाँ 'बरसी तप' का पारणा करने के लिए हजारों तपस्वी उपासक-उपासिकाएं और अन्य हजारों यात्री आते हैं।
पहाड़ पर चढ़ने के लिए भव्य सोपान-मार्ग है। नगर बड़ी-बड़ी धर्मशालाओं से भरा पड़ा है। यहाँ सैकड़ों जैन साधु-साध्वियां हैं। महाराज कुमारपाल ने लाखों रुपये खर्च कर यहाँ के मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। यहाँ से अनेक मुनि निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। थावच्चापुत्त का यहीं निर्वाण हुआ था। ४. श्रवणबेलगोल
जैनों का यह प्रसिद्ध तीर्थ कर्णाटक प्रांत के हासन जिले में है। यह चन्द्रगिरि और विध्यगिरि, इन दो पर्वतों की तलहटी में एक सरोवर पर स्थित है। यह मैसूर नगर से ६२ मील की दूरी पर है। इसे गोम्मट तीर्थ कहा जाता है। यहाँ गोमटेश्वर बाहुबली की ५७ फुट (पाँच सौ धनुष्य) ऊंची मूर्ति है। इसकी स्थापना राजमल्ल नरेश के प्रधानमन्त्री तथा सेनापति चामुण्डराय ने कराई थी। विद्वानों ने स्थापना की तिथि २३ मार्च, सन् १०२८ निश्चित की है। यह नयनाभिराभ मूर्ति एक ही पत्थर में उत्कीर्ण है। यह विश्व का आठवां आश्चर्य माना जा सकता है। बारह वर्षों में एक बार इसका मस्तकाभिषेक होता है।
चामुण्डराय का घरेलू नाम 'गोम्मट' था। सम्भव है इसलिए उनके द्वारा निर्मित और स्थापित मूर्ति को भी ‘गोम्मटेश्वर' कहा गया। सिद्धान्त-चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र ने चामुण्डराय का उल्लेख 'गोम्मटराय' के नाम से किया है
और पंचसंग्रह ग्रन्थ का नाम 'गोम्मटसार' रखा। श्रवणबेलगोल में लगभग ५०० शिलालेख हैं। श्रवणबेलगोल तीन शब्दों से बना है। श्रवण का अर्थ है-जैन मुनि, बेल का अर्थ है-श्वेत और गोल का अर्थ है-सरोवर। श्रवणबेलगोल अर्थात् जैन मुनियों का धवल सरोवर।
५. राणकपुर
अरावली पर्वत-श्रृंखलाओं के मध्य राणकपुर (रणकपुर) नाम का गाँव है। . यह राजस्थान के पाली जिले के अन्तर्गत है। यह फालना स्टेशन से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
___ माना जाता है कि नंदीपुर गांव में जिनेश्वर उपासक धरणाशाह को एक रात्रि में स्वप्न आया। उसमें उन्होंने 'नलिनी गुल्म' विमान देखा। उस विमान की