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________________ यहाँ सामायिक एक, चउवीसत्थव दो, वंदना तीन यह तीनों आवश्यक पूर्ण हुए। अब चौथे आवश्यक की तिक्खुत्तो से तीन बार गुरु-वंदन कर आज्ञा लें और निम्न पाठों को क्रमशः बोलें। | ज्ञानातिचार आगमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहां-सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे, ___ इस तरह तीन प्रकार आगम रूप ज्ञान के विषय में जो कोई अतिचार लगा - हो तो आलोऊँ- -- ___ जं वाइद्धं, वच्चामेलियं, हीणक्खरं, अच्चक्खरं, पय-हीणं, विणय-हीणं, जोगहीणं, घोस-हीणं, सुठु दिन्नं, दुळु पडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाए सज्झाइयं, सज्झाए न सज्झाइयं, भणतां, गुणतां, विचारतां, ___ ज्ञान और ज्ञानवन्त की आशातना की हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। । श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ५५ ५५
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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