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तं जहा - इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे,
मरणासंसप्पओगे,
कामभोगासंसप्पओगे,
[मा मज्झ हुज्ज मरणंते वि सड्ढापरूवणम्मि
अन्नहा भावो]
मारणान्तिक कष्ट के होने पर भी मेरी श्रद्धा प्ररूपणा
में अन्तर आया हो, तो आलोऊँ ।
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अठारह पापस्थानक के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊँ
(१) प्राणातिपात, (२) मृषावाद, (३) अदत्तादान, (४) मैथुन, (५) परिग्रह, (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (९) लोभ, (१०) राग, (११) द्वेष, (१२) कलह, (१३) अभ्याख्यान, (१४) पैशुन्य, (१५) पर- परिवाद, (१६) रति - अरति, (१७) मायामृषावाद, (१८) मिथ्यादर्शन शल्य ।
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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