SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्ग-बोहिलाभं, समाहि-वरमुत्तमं दितु ॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥ __[तिक्खुत्तो तीन बार बोलकर गुरु से या वे न हों तो भगवान की साक्षी से सामायिक की आज्ञा लेना और करेमि भंते एक बार बोलना।] | प्रतिज्ञा सूत्र | करेमि भंते ! सामाइयं, सावज जोगं पच्चक्खामि। जाव नियम पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि, २. 'जाव नियम' के बाद जितनी सामायिक करनी हो, उतने ही मुहूर्त कहने चाहिए, जैसे- जाव नियम मुहूर्त एक, मुहूर्त दोआदि। श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र २७
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy