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किया, तदर्थ जिज्ञासु वर्ग की ओर से मैं श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूँ । प्रस्तुत पुस्तक के चार संस्करण समाप्त हो गये, यह इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। पंचम संस्करण की माँग दीर्घकाल से बनी हुई थी, इस संस्करण में यथास्थान आवश्यक चित्र देकर इसे और भी उपयोगी बना दिया गया है ।
मुझे हार्दिक विश्वास है कि इस नई साज-सज्जा से युक्त प्रस्तुत श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र साधकों को अपने आप को परखने की प्रेरणा देगा तथा श्रद्धालुगण इससे लाभ उठायेंगे, विशेषतः युवक और बालक वर्ग । सुज्ञेषु किं बहुना ।
- आचार्य देवेन्द्र मुनि
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