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________________ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करना चाहिए । वर्ष में चातुर्मासिक प्रतिक्रमण तीन बार आते हैं-प्रथम आषाढ़ी पूर्णिमा, द्वितीय कार्तिक पूर्णिमा, तृतीय फाल्गुनी पूर्णिमा । सांवत्सरिक प्रतिक्रमण वर्ष में एक बार आता है। प्रतिदिन प्रातः सायंकाल को नियमित प्रतिक्रमण करना चाहिए। जिस मकान में प्रतिदिन झाडू लगाया जाता है वह मकान स्वच्छ रहता है। पर्यों के अवसर पर उसे विशेष झाड़ने की आवश्यकता नहीं रहती। यदि कहीं असावधानी से धूल जम जाती है तो वह साफ कर दी जाती है वैसे ही प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने से आत्मा निर्मल रहती है, यदि कदाचित् सावधानी रखने के बावजूद भी कहीं पर स्खलना हो जाती है तो पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण से उसकी भी शुद्धि कर ली जाती है। कई व्यक्तियों की यह भ्रान्त विचारधारा है कि प्रतिक्रमण तो उन्हें ही करना चाहिए, जिन्होंने बारह व्रत अंगीकार कर रखे हों। जिन व्यक्तियों ने बारह व्रत अंगीकार नहीं किये हैं उन्हें प्रतिक्रमण करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब त्याग ही नहीं किया है तब प्रतिक्रमण किस बात का किया जाय? किन्तु उनकी यह विचारधारा उचित नहीं है, चाहे व्रत ग्रहण किये हों या न किये हों तथापि प्रतिक्रमण करने से आत्म-निरीक्षण का सुनहरा अवसर मिलता है, त्याग के प्रति निष्ठा जाग्रत होती है। स्वाध्याय होने से मन और वाणी की भी
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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